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Showing posts from September, 2024

मैं हूँ, *और मैं ही रहुँगी*

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एक बेहद खूबसूरत कविता मिली पता नहीं किसकी है गौर फरमाएं------ मैं,  मैं हूँ ,  मैं ही रहूँगी। मै "राधा" नहीं बनूंगी, मेरी प्रेम कहानी में,,, किसी और का पति हो, रुक्मिनी की आँख की किरकिरी मैं क्यों बनूंगी, मैं "राधा" नहीं बनूँगी। मै *सीता* नहीं बनूँगी, मै अपनी पवित्रता का, प्रमाणपत्र नहीं दूँगी, आग पे नहीं चलूंगी  वो क्या मुझे छोड़ देगा- मै ही उसे छोड़ दूँगी, मै सीता नहीं बनूँगी,, ना मैं *मीरा* ही बनूंगी, किसी मूरत के मोह मे, घर संसार त्याग कर, साधुओं के संग फिरूं एक तारा हाथ लेकर, छोड़ ज़िम्मेदारियाँ- मैं नहीं मीरा बनूंगी। *यशोधरा* मैं नहीं बनूंगी छोड़कर जो चला गया कर्तव्य सारे त्यागकर ख़ुद भगवान बन गया, ज्ञान कितना ही पा गया, ऐसे पति के लिये मै पतिव्रता नहीं बनूंगी, यशोधरा मैं नहीं बनूंगी। *उर्मिला* भी नहीं बनूँगी मैं पत्नी के साथ का जिसे न अहसास हो, पत्नी की पीड़ा का ज़रा भी जिसे ना आभास हो, छोड़ वर्षों के लिये भाई संग जो हो लिया- मैं उसे नहीं वरूंगी उर्मिला मैं नहीं बनूँगी। मैं *गाँधारी* नहीं बनूंगी, नेत्रहीन पति की आँखे बनूंगी,, अपनी आँखे मूंद लू अंध

शिक्षा से बड़ा अनुभव है।

* प्रातः वंदन,,,,🙏* *सम्मान हमेशा समय का होता है* *लेकिन आदमी अपना समझ लेता है* *जो आनंद अपनी छोटी पहचान* *बनाने मे है वो किसी बड़े की* *परछाई बनने मे नही है* *बोलना और प्रतिक्रिया करना ज़रूरी है* *लेकिन संयम और सभ्यता का* *दामन नहीं छूटना चाहिए* *मैं सब कुछ और तुम कुछ भी नहीं* *बस यही सोच हमें* *इंसान नहीं बनने देती* *जब इंसान अपनी गलतियोंका* *वकील और दूसरों की गलतियों का* *जज बन जाये तो फैसले नहीं* *रिश्तो में फांसले हो जाते है*                       *सुप्रभात,,,,🙏* 2️⃣2️⃣❗0️⃣9️⃣❗2️⃣0️⃣2️⃣4️⃣ *♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*           *!! अनोखा स्वयंवर !!* ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ एक राजा की बेटी का स्वयंवर था। बेटी की यह शर्त थी कि जो भी 20 तक की गिनती सुनाएगा, वही राजकुमारी का पति बनेगा। गिनती ऐसी होनी चाहिए जिसमें सारा संसार समा जाए। जो यह गिनती नहीं सुना सकेगा, उसे 20 कोड़े खाने पड़ेंगे। यह शर्त केवल राजाओं के लिए ही थी। अब एक तरफ राजकुमारी का वरण और दूसरी तरफ कोड़े! एक-एक करके राजा महाराजा आए। राजा ने दावत का आयोजन भी किया। मिठाई और विभिन्न पकवान तैयार किए गए। पहले सभी दावत का आ

गर्व है हमें अपनी संस्कृति पर l

● तीन दोस्त भंडारे में भोजन कर रहे थे...उनमें से ● पहला बोला --- "काश...हम भी ऐसे भंडारा कर पाते!" ● दूसरा बोला --- "हाँ...यार सैलरी तो आने से पहले ही जाने के रास्ते बना लेती है!" ● तीसरा बोला ---"खर्चे...इतने सारे होते है तो कहाँ से करें भंडारा!" ● उनके पास बैठे एक महात्मा भंडारे का आनंद ले रहे थे। और वो उन तीनों दोस्तों की बातें भी सुन रहे थे, महात्मा उन तीनों से बोले ---"बेटा भंडारा करने के लिए धन नहीं केवल अच्छे मन की जरूरत होती है!" ● वह तीनों आश्चर्यचकित होकर महात्मा की ओर देखने लगे!.. महात्मा ने सभी की उत्सुकता को देखकर हंसते हुए कहा --- बच्चों तुम.. * रोज़ 5-10 ग्राम आटा लो और उसे चीटियों के स्थान पर खाने के लिए रख दो, देखना अनेकों चींटियां-मकौड़े उसे खुश होकर खाएँगे। बस हो गया भंडारा!* * चावल-दाल के कुछ दाने लो, उसे अपनी छत पर बिखेर दो और एक कटोरे में पानी भर कर रख दो, चिड़िया-कबूतर आकर खाएंगे। बस हो गया भंडारा!* * गाय और कुत्ते को रोज़ एक-एक रोटी खिलाओ, और घर के बाहर उनके पीने के लिये पानी भर कर रख दो। बस हो गया भंडारा!* ● ईश्वर ने सभी

राम नाम का महात्म्य

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। । राम नाम का महात्म्य ।। राम नाम की महिमा अनंत और अपार है। भगवान राम से भी बड़ा है उनका नाम। भगवान स्वयं भी राम नाम की महिमा का गुणगान करते हैं। राम नाम का जाप करने से बड़े से बड़े संकट भी टल जाते हैं और हर समस्या का समाधान मिल जाता है।  रामायण में एक प्रसंग आता है जिसमें भगवान शिव भी राम नाम की महिमा का गुणगान करते हैं। भगवान शिव कहते हैं कि भगवान राम से भी बड़ा उनका नाम है। राम नाम का जाप करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और जीव को मोक्ष की प्राप्ति होती है।  राम नाम की ताकत का सबसे बड़ा उदाहरण हनुमान जी हैं। हनुमान जी ने राम नाम के बल पर समुद्र को लांघा, लंका को जलाया और पर्वत को उठाकर ले आए। राम नाम के बल पर ही उन्होंने असंभव को संभव बना दिया।  भगवान राम भी अपने भक्तों को कहते हैं कि जो राम नाम का सच्चे मन से जाप करता है, वह सभी कष्टों से मुक्त हो जाता है। तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस में राम नाम की महिमा का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है- राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरी द्वार। तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजियार।। इसका अर्थ है कि राम नाम एक ऐसा प्रकाश है जो अंदर

पौराणिक कथा⚜️*

*⚜️ पितरों को मुक्ति दिलाने वाले गया तीर्थ स्थल की सबसे प्रचलित पौराणिक कथा⚜️* असुर, दानव, राक्षस, दैत्य आदि को हमेशा अपवित्र माना जाता है। पर क्या आप जानते हैं, एक असुर ऐसा भी था, जिसकी तपस्या से खुश हो कर, श्रीहरि ने उसे सभी तीर्थों से अधिक पवित्र और पावन बना दिया। आज हम बात कर रहे हैं, पितरों को मुक्ति दिलाने वाले, गया तीर्थ की। चलिए जानते हैं, आग्नेय महापुराण की एक कथा के माध्यम से कि कैसे एक असुर का शरीर बन गया पावन तीर्थ स्थान। एक समय की बात है, एक असुर था ‘गय’। गयासुर भगवान् श्रीहरि को प्रसन्न करने के लिए घोर तप करने लगता है। उसके तप के प्रभाव से सभी देवी-देवता परेशान हो जाते हैं। वे सभी देवता, भगवान् विष्णु के पास जाते हैं और उनसे प्रार्थना करने लगते हैं कि वे गयासुर के तप के कारण हो रही समस्या का, कोई समाधान निकालें। वे सभी दयनीय स्थिति दिखाते हुए, श्रीहरि से अपनी रक्षा करने को कहते हैं। श्रीहरि देवताओं को आश्वस्त करते हैं और कठोर तप कर रहे, गयासुर के सामने प्रकट हो जाते हैं। अपने सामने अपने आराध्य को देख कर गयासुर भाव-विभोर हो जाता है। भगवान् उसकी तपस्या से प्रसन्न हो कर, उसे

परम पूज्य पितरों को सादर नमन🙏

🙏 परम पूज्य पितरों को सादर नमन🙏* *✍🏻पितृ पक्ष/श्राद्ध पक्ष 18 सि. से 2 अ.तक* वो कल थे तो आज हम हैं उनके ही तो अंश हम हैं। जीवन मिला उन्हीं से उनके कृतज्ञ हम हैं, सदियों से चलती आयी श्रंखला की कड़ी हम हैं। गुण धर्म उनके ही दिये उनके प्रतीक हम हैं, रीत रिवाज़ उनके हैं दिये संस्कारों में उनके हम हैं।  देखा नहीं सब पुरखों को पर उनके ऋणी तो हम हैं, पाया बहुत उन्हीं से पर न जान पाते हम हैं। दिखते नहीं  वो हमको  पर उनकी नज़र में हम हैं, देते सदा आशीष हमको धन्य उनसे हम हैं। खुश होते उन्नति से दुखी होते अवनति से, देते हमें सहारा उनकी संतान जो हम हैं। इतने जो दिवस मनाते मित्रता प्रेम आदि के, पितरों को भी याद कर लें जिनकी वजह से हम हैं। आओ नमन कर लें, कृतज्ञ हो लें, क्षमा माँग लें, आशीष ले लें पितरों से जो चाहते हमारा भला  उनके जो अंश हम हैं...!!! *सर्व  पितृ पितरों को शत शत नमन*              *मंजिलें कदम चूमेगी*               *रास्ता खुद बन जाएगा*              *हौसला कर तू बुलंद तो*              *आसमां भी झुक जाएगा*                                                      🍂 *🙏सुप्रभात🙏*

Mere Dil Ne Jo Maanga.. Song Review

Let’s start the day with T. Govindarajan & S. Krishnamoorthy’s 1971 action thriller film *”Rakhwala”* directed by Adurthi Subba Rao.  The film starred Dharmendra, Leena Chandavarkar and Vinod Khanna. They were supported by Madan Puri, Jagdeep and Rakesh Pandey.  This film was a remake of the hit Tamil film "Kaavalkaaran" (1967) starring M.G. Ramachandran and Jayalalitha. Rakhwala was successful movie of year 1971. This film has been forgotten by now, but it was a decent movie with great music. The film, "had its bright moments in the presence of Dharmendra and Vinod Khanna, two evergreen stars of Indian cinema Here is a song that is bound to cheer up its listeners. “Mere dil ne jo maangaa mil gayaa”- what superb lyrics (Hasrat Jaipuri), what lovely music (Kalyanji Anandji) and what beautiful and joyous rendering by Lata. This song is picturised on Leena Chandawarkar and Dharmendra. In addition to bringing old memories back, this song is a reminder of the days when th

हाथ से खाना क्यों खाना चाहिए???

हाथ से खाना क्यों खाना चाहिए??? अधिकतर भारतीय लोग अपने हाथों से खाना खाते हैं। लेकिन आजकल हमने पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करते हुए चम्मच और कांटे से खाना शुरू कर दिया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अपने हाथों से खाना खाने के स्वास्थ्य से संबंधित कई फायदे हैं। यह आपके प्राणाधार की एनर्जी को संतुलित रखता है आयुर्वेद में कहा गया है कि हम सब पांच तत्वों से बने हैं जिन्हें जीवन ऊर्जा भी कहते हैं,और ये पाँचों तत्व हमारे हाथ में मौजूद है। आपका अंगूठा अग्नि का प्रतीक है। तर्जनी अंगुली हवा की प्रतीक है। मध्यमा अंगुली आकाशकी प्रतीक है। अनामिका अंगुली पृथ्वी की प्रतीक है । छोटी अंगुली जलकी प्रतीक है।  इनमे से किसी भी एक तत्व का असंतुलन बीमारी का कारण बन सकता है। जब हम हाथ से खाना खाते हैं तो हम अँगुलियों और अंगूठे को मिलाकर खाना खाते हैं और यह जो मुद्रा है यह मुद्रा विज्ञान है, यह मुद्रा का ज्ञान है और इसमें शरीर को निरोग रखने की क्षमता निहित है। इसलिए जब हम खाना खाते हैं तो इन सारे तत्वों को एक जुट करते हैं जिससे भोजन ज्यादा ऊर्जादायक बन जाता है और यह स्वास्थ्यप्रद बनकर हमारे प्राणाधार की एनर्

पंचामृत के 5 तत्वों का महत्व

*🪷 पंचामृत के 5 तत्वों का महत्व 🪷* *1. दुग्ध, 2.दधि, 3.घृत, 4.मधु, 5.शर्करा (चीनी)* घटक~~~अनुपात~~~तत्त्व ★दूध~~~ 5 चम्मच~~~पानी ★दही~~~ 4 चम्मच~~~पृथ्वी ★चीनी~~~ 3 चम्मच~~~वायु ★घी~~~ 2 चम्मच~~~आग ★शहद~~~1 चम्मच~~~अंतरिक्ष दूध - इसकी हल्की और शुद्ध बनावट के कारण जल तत्व माना जाता है जो अन्य अवयवों के साथ मिश्रण करने के लिए आसानी से बह सकता है। दही - आकार, धारण / स्थिरता और समृद्धि बनाने की प्रवृत्ति के कारण पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। चीनी - वायु तत्व की तरह कार्य करता है क्योंकि यह फैलता है और देखे बिना फैलता है। घी - यहाँ अग्नि के रूप में संबोधित किया जाता है क्योंकि यह न केवल पोषण करता है बल्कि ज्ञान प्राप्त करने में मदद करता है और विजयी होने के लिए हमारी प्रतिरक्षा को मजबूत करता है। शहद - यहाँ अंतरिक्ष तत्व के रूप में कार्य करता है क्योंकि इसका उपयोग कम से कम मात्रा में किया जाता है फिर भी यह उपस्थिति को चिह्नित करता है। इसके अलावा यह इस पवित्र सामग्री को बनाने में मधुमक्खियों के झुंड द्वारा विकसित मिठास और एकता कारक का स्वाद लाता है।। सभी तत्व एक दूसरे के विरुद्ध प्रकृ

क्या दिक्कत है ?

क्या दिक्कत है ? टेंपरेचर  को   ताप कहने में। यू    को   आप कहने में। स्टीम को  भाप कहने में। फादर को बाप कहने में।  क्या दिक्कत है ? बैड   को   ख़राब कहने में। वाईन  को  शराब कहने में।  बुक  को  किताब कहने में। सॉक्स को ज़ुराब कहने में। क्या दिक्कत है ? डिच   को  खाई  कहने में। आंटी  को   ताई  कहने में। बार्बर   को   नाई  कहने में। कुक को हलवाई कहने में। क्या दिक्कत है ? इनकम  को आय कहने में। जस्टिस को न्याय कहने में। एडवाइज़ को राय कहने में। टी को चाय कहने में।  क्या दिक्कत है ?   फ़्लैग  को  झंडा कहने में। स्टिक  को  डंडा कहने में। कोल्ड  को ठंडा कहने में। एग को  अंडा कहने में। क्या दिक्कत है ? बीटिंग  को कुटाई कहने में। वॉशिंग को धुलाई कहने में। पेंटिंग   को  पुताई कहने में। वाइफ  को लुगाई कहने में। क्या दिक्कत है ? स्मॉल को छोटी कहने में। फैट   को  मोटी कहने में। टॉप  को  चोटी कहने में। ब्रेड   को   रोटी कहने में। क्या दिक्कत है ? ब्लैक   को   काला कहने में। लॉक   को    ताला कहने में। बाउल   को प्याला कहने में। जेवलीन को भाला कहने में। क्या दिक्कत है ? गेट   को   द्वार कहने में। ड

बहुत अच्छी कहानी

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आंखो में आंसु आ गए पढ़ कर  एक दिन एक बुजुर्ग डाकिये ने एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हुए कहा..."चिट्ठी ले लीजिये।" आवाज़ सुनते ही तुरंत अंदर से एक लड़की की आवाज गूंजी..." अभी आ रही हूँ...ठहरो।" लेकिन लगभग पांच मिनट तक जब कोई न आया तब डाकिये ने फिर कहा.."अरे भाई! कोई है क्या, अपनी चिट्ठी ले लो...मुझें औऱ बहुत जगह जाना है..मैं ज्यादा देर इंतज़ार नहीं कर सकता....।" लड़की की फिर आवाज आई...," डाकिया चाचा , अगर आपको जल्दी है तो दरवाजे के नीचे से चिट्ठी अंदर डाल दीजिए,मैं आ रही हूँ कुछ देर औऱ लगेगा ।  " अब बूढ़े डाकिये ने झल्लाकर कहा,"नहीं,मैं खड़ा हूँ,रजिस्टर्ड चिट्ठी है,किसी का हस्ताक्षर भी चाहिये।" तकरीबन दस मिनट बाद दरवाजा खुला। डाकिया इस देरी के लिए ख़ूब झल्लाया हुआ तो था ही,अब उस लड़की पर चिल्लाने ही वाला था लेकिन, दरवाजा खुलते ही वह चौंक गया औऱ उसकी आँखें खुली की खुली रह गई।उसका सारा गुस्सा पल भर में फुर्र हो गया। उसके सामने एक नन्ही सी अपाहिज कन्या जिसके एक पैर नहीं थे, खड़ी थी।  लडक़ी ने बेहद मासूमियत से डाकिये की तरफ़ अपना हाथ बढ़ाया

जापान में, शिक्षक दिवस

जापान में, कोई शिक्षक दिवस नहीं मनाया जाता।   एक दिन मैंने अपने जापानी सहकर्मी, शिक्षक यामामोटो से पूछा, "आप जापान में शिक्षक दिवस कैसे मनाते हैं?"   मेरे प्रश्न से चकित होकर, उन्होंने जवाब दिया, "हम शिक्षक दिवस नहीं मनाते।"   जब मैंने उनका जवाब सुना, तो मुझे विश्वास नहीं हुआ। मेरे मन में एक विचार आया, "जो देश अर्थव्यवस्था, विज्ञान और तकनीक में इतना आगे है, वह शिक्षकों और उनके कार्यों के प्रति इतना अनादर कैसे कर सकता है?"   एक बार, काम के बाद, यामामोटो ने मुझे अपने घर बुलाया। हम मेट्रो ट्रेन से गए क्योंकि उनका घर दूर था। यह शाम का व्यस्त समय था और मेट्रो पूरी तरह से भरी हुई थी। मैंने किसी तरह खड़े रहने की जगह ढूंढ ली। अचानक, मेरे पास बैठे एक वृद्ध व्यक्ति ने मुझे अपनी सीट देने की पेशकश की। एक वृद्ध व्यक्ति के इस सम्मानजनक व्यवहार को समझ न पाकर मैंने मना कर दिया, लेकिन उनका बहुत आग्रह था, और मुझे बैठना पड़ा।   मेट्रो से बाहर निकलने के बाद, मैंने यामामोटो से पूछा कि सफेद दाढ़ी वाले उस दादा ने ऐसा क्यों किया? यामामोटो मुस्कुराए और मेरे शिक्षक के टैग की ओर इशा

Beautiful Song of the Day

Let’s start the day with  Mukhram Sharma& N. C. Sippy’s drama film *”Diwana”* directed by Mahesh Kaul.  The film starred Raj Kapoor and Saira Banu. They were supported by Lalita Pawar, Kamal Kapoor,Leela Mishra, Ravinder Kapoor, Salim Khan and Kanhaiyalal.  This film is also remembered for Kamal Kapoor's strong performance as Raj Kapoor's father. Raj Kapoor's son Rishi did a movie with the same title 25 years later in 1992, with a different storyline. All the songs were popular and played on radio before the film release. Some are still popular like "Diwana Mujhko Log Kahein ", "Jisne Tumhe Chand Si Surat", "Hum To Jate Apne Gaon" and "Tumhari Bhi Jai Jai".  Today’s song is sung by Mukesh and it is lip synced by Raj Kapoor, with Saira Bano watching him. Hasrat Jaipuri is the lyricist. Music is composed by Shankar Jaikishan. *"Taron Se Pyare"* lyrics by Hasrat Jaipuri, composed by Shanker Jaikishan and sung by Mukesh 🎤🎶

जलेबी सिर्फ मिठाई नहीं आयुर्वेदिक दवाई भी है

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जलेबी सिर्फ मिठाई नहीं आयुर्वेदिक दवाई भी है ये एक राजशाही पकवान है जिसे दूध दही या रबड़ी से खाया जाता है। जलेबी का आयुर्वेदिक उपयोग : जलेबी एक भारतीय व्यंजन है जो की जलोदर नामक बीमारी का इलाज में प्रयोग की जाती थी शुगर बीमारी को नियंत्रित करने के लिए जलेबी को दही से खाते थे खाली पेट दूध जलेबी खाने से वजन और लम्बाई बढ़ाने के लिए किया जाता था । माइग्रेन की और सिर दर्द के लिए सूर्योदय से पहले दूध जलेबी खाने को आयुर्वेद में लिखा है ग्रह शांति अथवा ईश्वर का भोग में जलेबी से :: आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा लिखित देवी पूजा पद्धति में भगवती को बिरयानी यानी हरिद्रान पुआ जलेबी भोग लगाने के विषय में लिखा है जलेबी माता भगवती को भोग में चढ़ाने की प्रथा है। इमरती जो की उडद दाल से बनती है वो शनिदेव के नाम पर हनुमान जी या पीपल वृक्ष या शनि मंदिर में चढ़ाने काले कौवा और कुत्ते को खिलाने से शनि का प्रभाव कम होता है। जलेबी बनाने की विधि हमारे प्राचीन ग्रंथ में जलेबी बनाने की विधि संस्कृत भाषा में लिखी है साथ ही जलेबी बनाने की विधि पुराणों में भी है इसे रस कुंडलिका नाम दिया है भोज कुतुहल में इसे जल वल्लीका