अमूल्य संदेश
* प्रायः लोगों के द्वारा प्रयत्न ना करना ही संतोष समझ लिया जाता है। अकर्मण्यता का नाम संतोष नहीं अपितु निरंतर प्रयत्नशील बने रहकर परिणाम के प्रति अनासक्त बने रहना ही संतोष है। *कई लोग संतोष की आड़ में अपनी अकर्मण्यता को छिपा लेते हैं। प्रयत्न करने में, उद्यम करने में, पुरुषार्थ करने में असंतोषी रहो। प्रयास की अंतिम सीमाओं तक जाओ।* *कर्म करते समय सब कुछ मुझ पर ही निर्भर है इस भाव से कर्म करो। कर्म करने के बाद सब कुछ प्रभु पर ही निर्भर है इस भाव से शरणागत हो जाओ।* *!!!...बूंद सा जीवन हैं इंसान का लेकिन अहंकार सागर से भी बड़ा है...!!!* *मंदिर की सीढ़ियों को हम इसलिए प्रणाम करते हैं क्योंकि वे स्वयं स्थिर रहकर न केवल दूसरों को ऊपर उठाती हैं, बल्कि भगवान के दर्शन करने में भी सहायता करती हैं. ऐसे लोग वंदनीय हैं, जो दूसरों को भी आगे बढ़ाते हैं।* *केवल उन्हीं के साथ मत रहिये जो आपको खुश रखते हैं* *थोड़ा उनके साथ भी रहिये जो आपको देखकर खुश रहते हैं*