ऋषि चिंतन 🙏
*🌴०४ सितंबर २०२५ गुरुवार 🌴* *।।भाद्रपद शुक्लपक्षद्वादशी २०८२ ।।* ➖➖➖➖‼️➖➖➖➖ *‼️ऋषि चिंतन ‼️* ➖➖➖➖‼️➖➖➖➖ *ईश्वर सर्वव्यापी और न्यायकारी है* ➖➖➖➖‼️ ➖➖➖➖ 👉 *"परमात्मा" खुशामद पसंद नहीं। किसी की निंदा-स्तुति की उसे आवश्यकता नहीं।* वह किसी पर प्रसन्न-अप्रसन्न नहीं होता। *"पूजा"-"उपासना" एक प्रकार का आध्यात्मिक व्यायाम है. जिसके करने से हमारा आत्मबल बढ़ता है, सतोगुण की मात्रा में वृद्धि होती है।* ईश्वर को सर्वव्यापक समझने वाला पापों से डरेगा। कोतवाल सामने खड़ा हो तो चोर प्रकृति का मनुष्य भी उस समय साधु-सा आचरण करता है। *सबसे बड़े कोतवाल "ईश्वर" को जो अपने अंदर-बाहर चारों ओर व्यापक देखता है वह दंड से डरेगा और पाप न कर सकेगा।* प्राणिमात्र में ईश्वर को व्यापक देखने वाला व्यक्ति सबके साथ सद्व्यवहार ही कर सकता है। *यह ईश्वरीय दृष्टि प्राप्त करना, ईश्वर आराधना का प्रधान उद्देश्य है।* ध्यान, प्रार्थना, पूजा, कीर्तन, जप आदि ऐसी मनोवैज्ञानिक क्रियाएँ हैं, जिनके द्वारा मनोभूमि में चिपके हुए अनेकों कुसंस्कार छूटते और उनके स्थान पर सुसंस्कारों की ...