छुपा हुआ सौभाग्य क्या है?
एक बार विन्स्टन चर्चिल ने अपना गिलास उठाकर कहा:
“मैं किसी को स्वास्थ्य या धन की शुभकामना नहीं देना चाहता — बल्कि सिर्फ़ किस्मत की।
क्योंकि टाइटैनिक जहाज़ पर ज़्यादातर लोग स्वस्थ भी थे और अमीर भी।
लेकिन उनमें से बहुत कम ही भाग्यशाली थे।”
यह सुनकर सोचने पर मजबूर होना पड़ता है।
क्या आप जानते हैं कि 9/11 हमले में एक वरिष्ठ अधिकारी सिर्फ़ इसलिए बच गए क्योंकि उस दिन वे अपने बेटे को उसके पहले स्कूल (किंडरगार्टन) छोड़ने गए थे?
एक और आदमी बच गया क्योंकि उस दिन उसके लिए डोनट्स लाने की बारी थी।
एक महिला बच गई क्योंकि उसकी अलार्म घड़ी नहीं बजी थी।
कोई और बच गया क्योंकि न्यू जर्सी के ट्रैफ़िक जाम ने उसे देर कर दी।
कोई बस छूट जाने से बच गया।
किसी के कपड़ों पर कॉफी गिर गई, इसलिए उसे घर जाकर कपड़े बदलने पड़े।
किसी की कार स्टार्ट नहीं हुई।
किसी को फ़ोन कॉल का जवाब देने के लिए वापस घर जाना पड़ा।
किसी माँ या पिता को अपने बच्चे के ज़्यादा देर लगाने की वजह से देर हुई।
एक आदमी टैक्सी पकड़ ही नहीं पाया।
लेकिन जो कहानी मुझे सबसे गहराई से छू गई, वह यह है:
एक व्यक्ति ने उस दिन नए जूते पहने थे।
रास्ते में उसके पैर में दर्द हुआ, तो वह पास की फ़ार्मेसी पर रुका और बैंड-एड खरीदे।
और वही छोटी-सी देरी उसकी जान बचा गई।
जब से मैंने यह सुना है, मेरी सोच बदल गई है।
अब जब मैं ट्रैफ़िक में फँस जाता हूँ…
जब मैं लिफ़्ट मिस कर देता हूँ…
जब मैं कुछ भूल जाता हूँ और वापस लौटना पड़ता है…
जब मेरी सुबह जैसी योजना थी वैसी नहीं गुजरती…
तो मैं रुककर यह सोचने की कोशिश करता हूँ:
शायद यह देरी कोई बाधा नहीं है।
शायद — यह ईश्वरीय समय है।
शायद मैं ठीक उसी जगह हूँ जहाँ मुझे होना चाहिए।
तो अगली बार जब आपकी सुबह बिखर जाए…
बच्चे देर करें, चाबियाँ खो जाएँ, हर सिग्नल लाल मिले —
तो तनाव मत लीजिए। ग़ुस्सा मत कीजिए।
हो सकता है… यह छुपा हुआ सौभाग्य हो।
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