हिंदुओं जरा सोचो🙏

 *मैं ट्रेन से यात्रा कर रहा था तो एक भिखारी मेरे पास आया और बोला "अल्लाह के नाम पर कुछ दे दो बाबा"*

*मैंने नजर उठा कर निर्विकार भाव से उसे देखा और बोला "मैं अल्लाह को नहीं मानता" तो क्यों दे दूँ ?*

*उसने घुरकर मुझे देखा तो उसके बाद मैंने उसे प्रस्ताव दिया कि तुम "भगवान राम" के नाम पर मांगो तो मैं तुम्हें 50 रुपया दूँगा*

*इस पर वो मेरा मुँह ताकने लगा और ट्रेन के आसपास के लोग भी कौतूहल से हमें देखने लगे*

*फिर, मैंने अपने प्रस्ताव को और अधिक आकर्षक बनाते हुए कहा कि अगर वो भगवान राम के नाम पर मांगेगा तो मैं उसे "100 रुपया" दूँगा*

*लेकिन, वो भिखारी इसके लिए तैयार नहीं हुआ और भुनभुनाते हुए चला गया और मैं भी मन ही मन "उसकी कट्टरता को भांपकर, पेपर पढ़ने लगा*

*लेकिन, इस घटना से मुझे ये सीख मिल गई कि एक भिखारी जिसके पास खाने को कुछ नहीं है और भीख मांगकर अपना जीवन-यापन करता है, वो भी "धन के कारण, अपने धर्म से समझौता" नहीं करता है तो क्या हम हिन्दू एक भिखारी से भी ज्यादा गए-बीते हैं जो अपने निजी स्वार्थ (धन अथवा पद) की लालच में अपने धर्म से गद्दारी करने व सेक्युलर बनने को हमेशा एक पैर पर खड़े रहते हैं*

*सोचना अवश्य और हो सके तो अपने भटके दोस्तों एवं ग्रुप में जरूर भेजें ताकि वे अपने मन में मंथन या मनन जरूर करें* 🙏🚩

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