एक जबर्दस्त संदेश
प्रिय दोस्तों एक जबर्दस्त संदेश आज सुबह पार्क में दौड़ते, एक व्यक्ति को देखा। मुझ से आधा किलोमीटर आगे था। अंदाज़ा लगाया कि मुझसे थोड़ा धीरे ही भाग रहा था। एक अजीब सी खुशी मिली। मैं पकड़ लूंगा उसे, यकीं था। मैं तेज़ और तेज़ दौड़ने लगा। आगे बढ़ते हर कदम के साथ, मैं उसके करीब पहुंच रहा था। कुछ ही पलों में, मैं उससे बस सौ क़दम पीछे था। निर्णय ले लिया था कि मुझे उसे पीछे छोड़ना है। गति बढ़ाई। अंततः कर दिया। उसके पास पहुंच, उससे आगे निकल गया। आंतरिक हर्ष की अनुभूति, कि मैंने उसे हरा दिया। बेशक उसे नहीं पता था कि हम दौड़ लगा रहे थे। मैं जब उससे आगे निकल गया, एहसास हुआ कि दिलो-दिमाग प्रतिस्पर्धा पर इस कद्र केंद्रित था....... कि घर का मोड़ छूट गया मन का सकूं खो गया आस-पास की खूबसूरती और हरियाली नहीं देख पाया ध्यान लगाने और अपनी आत्मा को भूल गया और व्यर्थ की जल्दबाज़ी में दो-तीन बार गिरा। शायद ज़ोर से गिरने पर, कोई हड्डी टूट जाती। तब समझ में आया, यही तो होता है जीवन में, जब हम अपने साथियों को, पड़ोसियों को, दोस्तों को, परिवार के सदस्यों को, प्रतियोगी समझते हैं...