एक कहानी और एक सीख
एक शख्स ज़िबाह की हुई मुर्गी लेकर कसाई की दुकान पर आया और कहा - "भाई जरा इस मुर्गी को काट कर मुझे दे दो।" कसाई बोला : "मुर्गी रखकर चले जाओ और आधे घँटे बाद आकर ले जाना।" इत्तिफ़ाक़ से जरा देर बाद ही शहर का काज़ी, कसाई की दुकान पर आ गया और कसाई से कहा : "ये मुर्गी मुझे दे दो" कसाई बोला : "ये मुर्गी मेरी नही है, बल्कि किसी और की है और मेरे पास भी अभी कोई और मुर्गी नही जो आप को दे सकूं।" काज़ी ने कहा : "कोई बात नही, ये मुझे दे दो मालिक आए तो कहना कि मुर्गी उड़ गई है।" कसाई बोला : "ऐसा कहने का भला क्या फायदा होगा? मुर्गी तो उसने खुद ज़िबाह करके मुझे दी थी, फिर ज़िबाह की हुई मुर्गी कैसे उड़ सकती है?" काज़ी ने कहा : "मैं जो कहता हूं उसे गौर से सुनो! बस ये मुर्गी मुझे दे दो और उसके मालिक से यही कहना कि तेरी मुर्गी उड़ गई है। वह ज़ियादा से ज़ियादा तुम्हारे खिलाफ मुकदमा लेकर मेरे पास ही आएगा।" कसाई बोला : "अल्लाह सब का पर्दा रखे" और मुर्गी काज़ी को पकड़ा दी। काज़ी मुर्गी लेकर निकल गया तो मुर्गी का मालिक भी आ गया और कसाई से पूछा ...