दोस्तों की door bell दबाते रहिये*

*दोस्तों की door bell दबाते रहिये*

पुराने साथियों को सताते रहिये,
प्रेम और क्रोध भी जताते रहिये।
कभी हाले दिल ही बताते रहिये,
कभी अपनी खबर सुनाते रहिये।
छठे छमाही समय निकाल कर,
*दोस्तों की डोर बेल दबाते रहिये।*

कभी अपने घर की देहरी लांघ,
दोस्तों के चक्कर लगाते रहिये।
अपने छोटे दरबे के बाहर झांक,
साथ में सुख दुःख सुनाते रहिये।
जब मन अनमना सा महसूस करे,
*दोस्तों की डोर बेल दबाते रहिये।*

कभी रखके हाथ उनके कंधों पर,
दोस्ती का अहसास कराते रहिये।
हरदम औपचारिकता में न जियें,
बिना मतलब भी बतियाते रहिये।
जब करने को कोई काम न सूझे,
*दोस्तों की डोर बेल दबाते रहिये।*

टूटे दिलों को आस दिलाते रहिये।
किस्मत के रूठों को हंसाते रहिये। 
जीवन से मायूस हो चुके दिलों में, 
आशाओं के दीपक जलाते रहिये।
जब दिल्लगी करने का मन करे,
*दोस्तों की डोर बेल दबाते रहिये।*

ऐसा न हो कि मन में पछताते रहें,
वक्त को भी मुट्ठी में फंसाते रहिये।
मिले जब भी तुमको खाली समय,
प्रियजनों को गले से लगाते रहिये।
करने को कुछ भी न सूझ रहा हो,
*दोस्तों की डोर बेल दबाते  रहिये।*
🙏🙏 🤝

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