पाप का प्रायश्चित्त🙏
।।श्रीहरिः।।
अनजाने में किये हुये पाप का प्रायश्चित्त कैसे होता है?
बहुत सुन्दर प्रश्न है ,यदि हमसे अनजाने में कोई पाप हो जाए तो क्या उस पाप से मुक्ति का कोई उपाय है।
श्रीमद्भागवतजी के षष्ठ स्कन्ध में महाराज परीक्षितजी ने श्रीशुकदेवजी से ऐसा प्रश्न किया था।
बोले भगवन - आपने पञ्चम स्कन्ध में जो नरकों का वर्णन किया ,उसको सुनकर तो गुरुवर रोंगटे खड़े जाते हैं।
प्रभूवर मैं आपसे ये पूछ रहा हूँ कि यदि कुछ पाप हमसे अनजाने में हो जाते हैं जैसे चींटी मर गयी,हम लोग श्वास लेते हैं तो कितने जीव श्वासों के माध्यम से मर जाते हैं। भोजन बनाते समय लकड़ी जलाते हैं ,उस लकड़ी में भी कितने जीव मर जाते हैं । और ऐसे कई पाप हैं जो अनजाने हो जाते हैं ।
तो उस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है भगवन ?
शुकदेवजी ने कहा राजन्! ऐसे पाप से मुक्ति के लिए रोज प्रतिदिन पाँच प्रकार के यज्ञ करने चाहिए ।
-महाराज परीक्षितजी ने कहा, भगवन् एक यज्ञ यदि कभी करना पड़ता है तो सोचना पड़ता है ।आप पाँच यज्ञ रोज कह रहे हैं । -
यहां पर शुकदेवजी हम सभी मानव के कल्याणार्थ कितनी सुन्दर बात बता रहे हैं ।
वे बोले राजन् ! पहला यज्ञ है -जब घर में रोटी बने तो पहली रोटी गऊ ग्रास के लिए निकाल देनी चाहिए ।
दूसरा यज्ञ है राजन् -चींटी को दस पाँच ग्राम आटा रोज वृक्षों की जड़ो के पास डालना चाहिए।
तीसरा यज्ञ है राजन्-पक्षियों को अन्न रोज डालना चाहिए ।
चौथा यज्ञ है राजन् -आटे की गोली बनाकर रोज जलाशय में मछलियों को डालना चाहिए ।
पांचवा यज्ञ है राजन् ! भोजन बनाकर रोटी के टुकड़े करके उसमें घी चीनी मिलाकर अग्नि को भोग लगाओ।
राजन् !अतिथि सत्कार खूब करें, कोई भिखारी आवे तो उसे जूठा अन्न कभी भी भिक्षा में न दे ।
राजन् !ऐसा करने से अनजाने में किये हुए पाप से मुक्ति मिल जाती है। हमें उसका दोष नहीं लगता ।उन पापों का फल हमें नहीं भोगना पड़ता।
राजा ने पुनः पूछ लिया भगवन् यदि
गृहस्थ में रहकर ऐसा यज्ञ न हो सके तो और कोई उपाय हो सकता है क्या।
तब यहां पर श्रीशुकदेवजी कहते हैं
राजन् !
कर्मणा कर्मनिर्हांरो न ह्यत्यन्तिक इष्यते।
अविद्वदधिकारित्वात् प्रायश्चितं विमर्शनम् ।।
नरक से मुक्ति पाने के लिए हम प्रायश्चित्त करें। कोई व्यक्ति तपस्या के द्वारा प्रायश्चित्त करता है। कोई ब्रह्मचर्य पालन करके प्रायश्चित्त करता है। कोई व्यक्ति यम,नियम,आसन के द्वारा प्रायश्चित्त करता है। लेकिन मैं तो ऐसा मानता हूँ राजन्!
केचित् केवलया भक्त्या वासुदेव
परायणः ।
राजन् ! केवल हरि नाम संकीर्तन से ही
जाने और अनजाने में किये हुए पापों को नष्ट करने की सामर्थ्य है ।
इसलिए सदैव कहीं भी कभी भी किसी भी समय सोते जागते उठते बैठते राम नाम रटते रहो।
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