कर्पूर आरती का अर्थ और महत्व

#कर्पूर आरती का अर्थ और महत्व

"कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा वसंतं हृदयारविंदे भवं भवानीसहितं नमामि।।"

"मंदारमालाकुलतालकायै कपालमालांकितशेखराय।
दिव्याम्बरायै च दिगंबराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।"

कर्पूर आरती का संबंध कर्पूर (कपूर) से नहीं

इस आरती को अक्सर "कर्पूर आरती" कहा जाता है, लेकिन इसका कपूर से कोई संबंध नहीं है। केवल इसकी शुरुआत "कर्पूरगौरं" शब्द से होती है, इसलिए इसे यह नाम दिया गया है। यह भगवान शिव और माता पार्वती की एक अत्यंत सुंदर स्तुति है। इसका अर्थ समझने से यह और अधिक आनंददायक हो जाता है।

शब्दार्थ और व्याख्या:

1. कर्पूरगौरं – कपूर के समान श्वेत, पवित्र, गौरवर्ण वाली (माँ पार्वती)

2. करुणावतारं – करुणा के साक्षात अवतार (भगवान शिव)

3. संसारसारं – संसार के सार (अर्थात् जो संसार का आधार हैं)

4. भुजगेन्द्रहारं – जिनके गले में भुजंगराज (सर्प) का हार सुशोभित है (शिव)

5. सदा वसंतं हृदयारविंदे – जो सदा भक्तों के हृदय के कमल में निवास करते हैं

6. भवं – भगवान शिव

7. भवानिसहितं – माता भवानी (पार्वती) सहित

8. नमामि – नमन करता हूँ, वंदन करता हूँ

दूसरा श्लोक:

9. मंदारमालाकुलतालकायै – मंदार पुष्पों की माला से सुशोभित (माँ पार्वती)

10. कपालमालांकितशेखराय – मस्तक पर नरमुंडों की माला धारण करने वाले (शिव)

11. दिव्याम्बरायै – दिव्य वस्त्र धारण करने वाली (पार्वती)

12. दिगंबराय – आकाश को ही वस्त्र मानने वाले (भगवान शिव)

13. नम: शिवायै – पार्वती को प्रणाम

14. नम: शिवाय – भगवान शिव को प्रणाम

भावार्थ:

यह स्तुति भगवान शिव और माता पार्वती के दिव्य स्वरूप का वर्णन करती है। शिव करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और सर्पों को आभूषण की तरह धारण करते हैं। वहीं, माता पार्वती मंदार पुष्पों से सुशोभित हैं। शिव दिगंबर हैं, जबकि माता दिव्य वस्त्रों में सुशोभित हैं। इस स्तुति में शिव-पार्वती को एक साथ नमन किया गया है।

यह स्तवन कई बार गलत उच्चारण के साथ बोला जाता है, इसलिए इसका सही अर्थ समझना बहुत आवश्यक है। इसे भावपूर्वक गाने से मन को शांति और भक्ति की अनुभूति होती है।

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