देवता और दैत्य*

*देवता और दैत्य*

*सतयुग में देवता और दैत्य अलग-अलग लोकों में रहते थे..!*
*देवता स्वर्गलोक में..!*
*और दैत्य पाताललोक में..!*
*दोनों की सीमाएँ बहुत स्पष्ट थीं..!!*

*सतयुग का धर्म दृढ़ था..!*
*इसलिए अच्छाई और बुराई का भेद भी,*
*बिल्कुल साफ दिखाई देता था..!!🙏*

*त्रेतायुग आया,*
*तो यह दूरी थोड़ी कम हो गई..!*
*अब देवता और दैत्य एक ही लोक में अवतरित हुए,*
*जैसे श्रीराम और रावण..!!*

*दोनों पृथ्वी पर थे,*
*परंतु अपने-अपने धर्म..!*
*अपने-अपने मार्ग पर अडिग..!!👍*

*अच्छाई और बुराई का संघर्ष तब भी था..!*
*पर वह दो व्यक्तित्वों में विभाजित था..!!🙏*

*द्वापर में यह दूरी और घट गई..!*
*अब देवत्व और दैतत्व एक ही परिवार में जन्म लेने लगे,*
*जैसे श्रीकृष्ण और कंस..!!*

*रक्त का संबंध तो था,*
*पर विचारों का अंतर जमीन-आसमान का..!*
*बुराई परिवार के भीतर तक पहुँच चुकी थी,*
*पर फिर भी रूप बहुत अलग थे..!!*

*लेकिन कलियुग में स्थिति सबसे कठिन हो गई..!*
*अब देवत्व और दैतत्व अलग शरीरों में नहीं,*
*एक ही मनुष्य की देह में वास करने लगे..!!👍*

*यही कारण है कि आज मनुष्य के भीतर ही,*
*पवित्रता भी है..!*
*और पाप की संभावना भी..!*
*कृपा भी है..!*
*और क्रूरता भी..!*
*दया का स्वर भी है..!*
*और घृणा की प्रतिध्वनि भी..!!*

*कलियुग में युद्ध बाहर नहीं,*
*मनुष्य के भीतर चल रहा है..!*
*कि कौन-सा पक्ष,*
*उसे दिशा देगा:-*
*देवत्व..!*
*या दैतत्व..!!🙏*

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