पहले प्रेम करना खुद से।

यदि तुम प्रेम में पड़ो, 
तो सबसे पहले प्रेम करना खुद से। 
और जताना खुद को
 कि तुम कितने खास हो।
जब भरोसा होने लगे किसी पर  
तो भरोसा रखना ये मन में, 
कि तुम्हारे प्रेम की नियति
 तुम्हे परिभाषित नहीं कर सकती। 
जब अधूरा रह जाए तुम्हारा प्रेम, 
तो उसका भार 
अपने कंधों पर मत रखना। 
मत देना स्वयं  को दोष।  
बस ये याद रखना कि 
तुम से ज्यादा तुम्हारा अपना 
कभी कोई था ही नहीं। 
क्योंकि सिर्फ तुम ही हो, 
 जो हर पल अपने आसपास हो। 
हर हार की, हर गलत फैसले की 
और हर नाकामी की जिम्मेदारी लेकर
 खुद को दर्द में न डुबा लेना तुम। 
और उस अधूरे प्रेम की गांठ
  अपने मन में लगाकर 
ठहर मत जाना विरह के पलों में। 
तुम आगे बढ़ना। 
हर दर्द , हर शिकायत और 
 हर उम्मीद को छोड़कर,
 बस इतना याद रखते हुए 
 कि प्रेम कभी खत्म नहीं होता। 
न किसी के रूठ जाने से,
 न किसी के छूट जाने से। 
इसलिए जब भी प्रेम में पड़ो, 
तो सबसे पहले प्रेम करना खुद से

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