इसे कहते है दोस्ती🙏
🇮🇳 ताशकंद–2 : जो होते-होते बच गया
प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा में राष्ट्रपति पुतिन की भूमिका — एक अनकही कूटनीतिक गाथा मीरा शर्मा की कलम्🖊️ से :- 
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के मंच पर कभी-कभी ऐसी घटनाएँ घट जाती हैं, जो इतिहास की दिशा बदल देती हैं।
SCO (Shanghai Cooperation Organisation) सम्मेलन के दौरान चीन में ऐसा ही एक क्षण आया, जिसने विश्व राजनीति की कई परतों को उजागर किया।
सूत्रों के अनुसार, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने स्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को फोन कर अपनी कार में साथ चलने का आग्रह किया।
राष्ट्रपति पुतिन, जो विश्व की सबसे प्रभावशाली शक्तियों में से एक हैं, उन्होंने मोदीजी के होटल के बाहर लगभग 15 मिनट प्रतीक्षा की — जो किसी भी उच्चस्तरीय कूटनीतिक कार्यक्रम में अत्यंत असामान्य है।
SCO जैसी बैठकें मिनट-टू-मिनट तय होती हैं, लेकिन पुतिन का यह व्यवहार किसी विशेष उद्देश्य या संकेत की ओर इंगित करता प्रतीत होता है।
👇👇👇. कहा जाता है कि पुतिन की कार ने 30 मिनट तक होटल के आसपास चक्कर लगाए। यह कदम सामान्य प्रोटोकॉल से हटकर था।
यदि आप दोनों नेताओं की कार में ली गई तस्वीरों को गौर से देखें, तो उनके चेहरों पर एक गहरी, चिंतनशील गंभीरता स्पष्ट झलकती है।
उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी उसी होटल में वापस नहीं लौटे।
अगले दिन एक गोष्ठी में उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज़ में कहा —
> “आप ताली किसके लिए बजा रहे हैं… मेरे जाने के लिए या लौटकर आने के लिए?”
एक साधारण वाक्य, परन्तु कूटनीतिक संकेतों से भरपूर।
इसी बीच, ढाका (बांग्लादेश) के एक प्रतिष्ठित होटल में अमेरिकी स्पेशल फोर्सेज़ के एक वरिष्ठ अधिकारी की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो जाती है।
स्थानीय पुलिस के सूचित करने से पहले ही अमेरिकी दूतावास के अधिकारी उस स्थान पर पहुँचते हैं और शव को अपने नियंत्रण में ले लेते हैं —
कोई पोस्ट-मॉर्टम नहीं, कोई सार्वजनिक जांच नहीं।
यह पूरी प्रक्रिया कई सवाल खड़े करती है — क्यों इतनी तत्परता और गोपनीयता?  अब सवाल उठता है —
SCO सम्मेलन का आयोजन किसने किया? चीन ने।
यदि कोई अनहोनी घट जाती, तो सीधा दोष चीन पर मढ़ा जाता,
और लाभ उठाने वाला कौन होता? — यह प्रश्न स्वयं उत्तर मांगता है।
इतिहास याद करता है कि 1966 में ताशकंद में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की रहस्यमयी मृत्यु हुई थी।
और आज भी उस घटना की छाया रूस पर आरोपों के रूप में बनी हुई है।
कहा जा रहा है कि यह संपूर्ण घटनाक्रम —
एक “ताशकंद-2” जैसी योजना थी,
जिसमें CIA और कुछ पश्चिमी शक्तियाँ शामिल थीं,
जिसका लक्ष्य था भारत के प्रधानमंत्री को नुकसान पहुँचाना।
किन्तु रूस की FSB (पूर्व KGB) और भारत की RAW ने मिलकर इस षड्यंत्र को असफल कर दिया।
राष्ट्रपति पुतिन का यह कदम केवल मित्रता नहीं, बल्कि एक रणनीतिक सुरक्षा कवच था —
जिसने भारत के नेतृत्व को संभावित खतरे से बचाया।आज जब वैश्विक राजनीति नए समीकरणों की ओर बढ़ रही है,
तो भारत और रूस का यह विश्वास-आधारित संबंध पहले से कहीं अधिक सशक्त दिखाई देता है।
राष्ट्रपति पुतिन के इस योगदान के लिए भारतवासी उनका अभिनंदन करते हैं —
क्योंकि उन्होंने भारत के मित्र प्रधानमंत्री की सुरक्षा को सर्वोपरि रखा।
कूटनीति के पर्दे के पीछे बहुत कुछ घट चुका है,
जिसका उल्लेख भले न किया जा सके,
पर संकेत स्पष्ट हैं —
भारत अब केवल प्रतिक्रिया नहीं देता,
बल्कि रणनीतिक रूप से जवाब देना जानता है।
 
 
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