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सुबह से संदेशे तो बहुत आये लेकिन मेहमान कोई नहीं आया. सोचता हूँ ड्राइंग रूम से सोफा हटा दूं. या ड्राइंग रूम का कांसेप्ट ही बदलकर वहां स्टडी रूम बना दूं।
दो दिन से व्हाट्स एप और एफबी के मेसेंजर पर मैसेज खोलते, स्क्रॉल करते और फिर जवाब के लिए टाइप करते करते दाहिने हाथ के अंगूठे में दर्द सा होने लगा है. बधाईयों के संदेशों तांता लगा है आते ही जा रहे हैं, लेकिन मेहमान नदारद है, ये है आज के दौर की दीवाली. 
मित्रों, अगर घर के आसपास के पडौसी को छोड़ दें तो त्यौहार पर मिलने जुलने का रिवाज़ ही खत्म हो चला है. पैसे वाले दोस्त और अमीर किस्म के रिश्तेदार मिठाईयां गिफ्ट तो ड्राइवर से भिजवाते हैं लेकिन खुद घर पर नहीं आते.
दरअसल घर अब, घर नहीं रहा. ऑफिस के वर्क स्टेशन की तरह घर, एक स्लीप स्टेशन है. हर दिन का एक रिटायरिंग बेस. आराम करिए, फ्रेश हो जाईये. घर अब, सिर्फ घरवालों का है. घर का समाज से कोई संपर्क नहीं है. मेट्रो युग में समाज और घर के बीच तार शायद टूट चुके हैं. हमें स्वीकार करना होगा कि, ये बचपन वाला घर नहीं रहा. अब घर और समाज के बीच में एक बड़ा फासला सा है.
वैसे भी शादी अब मैरिज हाल में होती है. बर्थडे मैक डोनाल्ड या पिज़्ज़ा हट में मनाया जाता है. बीमारी में नर्सिंग होम में खैरियत पूछी जाती है. और अंतिम आयोजन के लिए सीधे लोग घाट पर पहुँच जाते हैं.
सच तो ये है कि, जब से डेबिट कार्ड और एटीएम आ गये हैं तब से मेहमान क्या... चोर भी घर नहीं आते हैं.
मैं सोचता हूँ कि, चोर आया तो, क्या ले जायेगा... फ्रिज, सोफा, पलंग, लैप टॉप.. टीवी... कितने में बेचेगा इन्हें चोर? अरे री सेल तो olx ने चौपट कर दी है. चोर को बचेगा क्या ? वैसे भी अब कैश तो एटीएम में है, इसीलिए होम डेलिवरी वाला भी, पिज़ा के साथ डेबिट मशीन साथ लाता है.

सच तो ये है कि, अब सवाल सिर्फ घर के आर्किटेक्ट को लेकर ही बचा है.
जी हाँ.... अब सोचता हूं कि क्या घर के नक़्शे से ड्राइंग रूम का कांसेप्ट खत्म कर देना चाहिये ? 
*इस दीवाली जरा इस सवाल पर गौर करियेगा. नहीं तो एक दोस्त के घर हो आइयेगा ... अगले साल आपके घर भी कोई आने लगेगा|*

🙏🙏🙏🙏🙏

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