मैं कौन हूँ?* (Who Am I ? )

एक मन का अंतरद्वंद 
 *मैं कौन हूँ?* (Who Am I ? )

 *सेवानिवृत्ति के बाद* ,
न कोई नौकरी,
न कोई दिनचर्या,
और एक शांत घर, जो अब सिर्फ सन्नाटे की गूंज है…
मैंने अंततः अपने असली अस्तित्व को खोजना शुरू किया।

मैं कौन हूँ?

मैंने बंगले बनवाए,
छोटे-बड़े कई निवेश किए,
पर आज,
चार दीवारों में सिमट गया हूँ।

साइकिल से मोपेड,
मोपेड से बाइक,
बाइक से कार तक की रफ्तार और स्टाइल का पीछा किया —
पर अब, धीरे-धीरे चलता हूँ,
वो भी अकेले, अपने कमरे के भीतर।

प्रकृति मुस्कराई और पूछा,
"तुम कौन हो, प्रिय मित्र?"
मैंने कहा,
"मैं... बस मैं हूँ।"

राज्य देखे, देश देखे, महाद्वीपों की सैर की,
पर आज,
मेरी यात्रा
ड्राइंग रूम से रसोईघर तक सीमित है।

संस्कृतियाँ और परंपराएँ सीखी,
पर अब,
केवल अपने ही परिवार को समझने की इच्छा है।

प्रकृति फिर मुस्कराई,
"तुम कौन हो, प्रिय मित्र?"
मैंने उत्तर दिया,
"मैं... बस मैं हूँ।"

कभी जन्मदिन, सगाई, शादियाँ धूमधाम से मनाईं —
पर आज,
सब्ज़ियाँ खरीदने के लिए
सिक्के गिनता हूँ।

प्रकृति ने फिर पूछा,
"तुम कौन हो, प्रिय मित्र?"
मैंने कहा,
"मैं... बस मैं हूँ।"

सोना, चाँदी, हीरे —
लॉकर्स में चुपचाप पड़े हैं।

सूट-ब्लेज़र —
अलमारी में टंगे हैं, बिना छुए।

पर अब,
मैं नरम सूती कपड़ों में जीता हूँ,
सादा और आज़ाद।

कभी अंग्रेज़ी, फ़्रेंच, हिंदी में दक्ष था —
अब,
माँ की बोली में
सुकून मिलता है।

काम के सिलसिलों में देश-देश घूमता रहा,
अब,
उन मुनाफ़ों और नुकसानों को
सिर्फ यादों में तौलता हूँ।

व्यवसाय चलाया,
परिवार बसाया,
अनेक रिश्ते बनाए,

पर अब,
मेरे सबसे प्रिय साथी
पड़ोस के वो स्नेही बुज़ुर्ग हैं।

कभी नियमों का पालन किया,
शिक्षा में आगे बढ़ा —
पर अब,
समझ आया कि वास्तव में मायने क्या रखता है।

ज़िंदगी की हर ऊँच-नीच के बाद,
एक शांत पल में,
मेरी आत्मा ने मुझसे फुसफुसा कर कहा:

बस अब…
तैयार हो जा,
हे यात्री…
अंतिम यात्रा की तैयारी कर।

प्रकृति ने कोमलता से मुस्कराते हुए पूछा,
"तुम कौन हो, प्रिय मित्र?"
और मैंने उत्तर दिया:

"हे प्रकृति,
तुम मैं हो…
और मैं तुम।
कभी मैं आकाश में उड़ता था,
अब ज़मीन को सम्मान से छूता हूँ।
मुझे क्षमा करो…
एक और मौका दो जीने का —
पैसा कमाने की मशीन नहीं,
एक सच्चा इंसान बनकर —
मूल्यों के साथ,
परिवार के साथ,
प्यार के साथ।"

सभी वरिष्ठ जनों को समर्पित।🙏

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