मित्रों पर कविता
*कदम रुक गए जब पहुंचे*
*हम रिश्तों के बाज़ार में...*
*बिक रहे थे रिश्ते*
*खुले आम व्यापार में..*
*कांपते होठों से मैंने पूँछा,*
*"क्या भाव है भाई*
*इन रिश्तों का..?"*
*दुकानदार बोला:*
*"कौन सा लोगे..?*
*बेटे का ..या बाप का..?*
*बहिन का..या भाई का..?*
*बोलो कौन सा चाहिए..?*
*इंसानियत का..या प्रेम का..?*
*माँ का..या विश्वास का..?*
*बाबूजी कुछ तो बोलो*
*कौन सा चाहिए*
*चुपचाप खड़े हो*
*कुछ बोलो तो सही...*
*मैंने डर कर पूछ लिया*
*"दोस्त का.."*
*दुकानदार नम आँखों से बोला:*
*"संसार इसी रिश्ते*
*पर ही तो टिका है..."*
*माफ़ करना बाबूजी*
*ये रिश्ता बिकाऊ नहीं है..*
*इसका कोई मोल*
*नहीं लगा पाओगे,*
*और जिस दिन*
*ये बिक जायेगा...*
*उस दिन ये संसार उजड़ जायेगा*
*सभी मित्रों को समर्पित*
❤️प्रभाकर चौधरी❤️
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