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हाल ही में किसी ने यह प्रश्न उठाया है :
अगर शिवजी कैलाश पर्वत (हिमालय) पर हैं तो उन्हें उपग्रह द्वारा क्यों नहीं देखा जा सकता है?
एक अमेरिकी, F. Shant जो St. Luis University से पीएचडी हैं और 30 से अधिक वर्षों से प्रैक्टिसिंग हिंदू हैं, ने इसका उत्तर बड़ी खूबसूरती से दिया।
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1. मानव आंखें और रिकॉर्डिंग उपकरण वो रिकॉर्ड नहीं कर सकते जो कुत्ते और बिल्लियाँ रात में देख लेते हैं। फिर आए इंफ्रारेड कैमरे, तब हमें अपनी आंखों की कमियों का एहसास हुआ। माइक्रोस्कोप ने कोशिकाओं को देखना शुरू कर दिया।
2. वैज्ञानिकों ने और बड़े माइक्रोस्कोप का निर्माण किया जैसे इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप तब यह महसूस किया कि स्वतंत्र अस्तित्व के सबसे छोटे हिस्से में भी कई भाग होते हैं। फिर आया CAT स्कैन, PET स्कैन, MRI, फिर हमने वो देखना शुरू कर दिया जो अबतक कोई जानता नहीं था।
3. जब वैज्ञानिकों ने सोचा कि अब हम सब कुछ जानते हैं, तो आया डार्क मैटर जो पहले कभी न देखा न सुना गया, पर अब माना जाता है कि यह अंतरिक्ष का लगभग 75% जगह घेरता है। फिर से हमें पता चला कि हम कुछ नहीं जानते।
4. एक प्रशिक्षित वैज्ञानिक के रूप में मैं इसका असली रहस्य साझा कर सकता हूं :
उस पर्वत पर शिव को देखने के लिए हमें अलग-अलग आंखों की जरूरत होती है। एक बार जब हमें वो आंखें मिल जाएंगी तब हम उन्हें न केवल कैलाश पर, बल्कि हर जगह और कहीं भी देख सकते हैं, क्योंकि वह पर्वत ही एकमात्र स्थान नहीं है, शिव तो हर जगह हैं।
जो अलग-अलग नेत्रों की आवश्यकता है वो है मन की, हृदय की, समर्पण की, भक्ति की आंखें। एक बार जब ये ज्ञान की आंखें मिल जाती हैं, फिर बाकी सब कुछ साफ साफ दिखने लगता है।
इस पोस्ट का एक मुख्य बिंदु यह भी है : कि इस व्याख्या को समझा कौन रहा है... एक अमेरिकी 🌺
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