मिलिए हमारा युवा वैज्ञानिक प्रताप से❤️
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उसका नाम प्रताप है, वह सिर्फ 21 साल का है।
वह कर्नाटक के मैसूर के पास कडैकुडी गांव का रहने वाला है।
उसका पिता एक साधारण किसान है।
वह एक गरीब छात्र था।
वह बचपन से ही अपनी कक्षा में प्रथम आता था, लेकिन अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया।
स्कूल की छुट्टियों में वह 100-150 रुपये कमाकर पास के इंटरनेट सेंटर में जाता और ISRO, NASA, BOEING, ROLLS ROYCE, HOWITZER आदि के बारे में रिसर्च करता और वहां के वैज्ञानिकों को ई-मेल भेजता।
उसे कभी कोई जवाब नहीं मिला, लेकिन उसने हार नहीं मानी और न ही उम्मीद छोड़ी।
उसे इलेक्ट्रॉनिक्स से बहुत प्रेम था। उसका सपना इलेक्ट्रॉनिक्स में इंजीनियरिंग करने का था, लेकिन गरीबी के कारण उसे बी.एससी (फिजिक्स) में दाखिला लेना पड़ा। फिर भी वह निराश नहीं हुआ।
होस्टल की फीस न दे पाने के कारण उसे बाहर कर दिया गया।
वह बसों में रहता, सार्वजनिक शौचालयों में काम करता और एक दोस्त की मदद से C++, Java, Python आदि सीखता।
वह अपने दोस्तों और ऑफिसों से ई-वेस्ट के रूप में कीबोर्ड, माउस, मदरबोर्ड और अन्य कंप्यूटर उपकरण इकट्ठा करता और उन पर रिसर्च करता।
वह मैसूर की इलेक्ट्रॉनिक कंपनियों में जाकर ई-वेस्ट के रूप में सामान इकट्ठा करता और एक ड्रोन बनाने की कोशिश करता।
वह दिन में पढ़ाई और काम करता और रात में प्रयोग करता।
करीब 80 प्रयासों के बाद उसका बनाया ड्रोन हवा में उड़ गया। उस समय वह एक घंटे तक खुशी से रोता रहा।
ड्रोन की सफलता की खबर से वह अपने दोस्तों में हीरो बन गया।
उसके पास अभी भी कई ड्रोन मॉडल की योजनाएँ हैं।
इसी बीच, उसने सुना कि दिल्ली में ड्रोन प्रतियोगिता होने वाली है।
वह काम करके 2000 रुपये जमा कर दिल्ली के लिए जनरल डिब्बे में बैठकर रवाना हुआ।
उस प्रतियोगिता में उसने दूसरा पुरस्कार जीता। और उसे जापान में होने वाली वर्ल्ड ड्रोन प्रतियोगिता में भाग लेने का अवसर मिला।
वह फिर से एक घंटे तक खुशी के मारे रोया।
जापान जाना लाखों रुपये का खर्च था। और किसी की सिफारिश भी जरूरी थी।
एक दोस्त ने चेन्नई के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रोफेसर से सिफारिश करवाई।
मैसूर के एक दानी ने फ्लाइट टिकट का खर्च उठाया।
बाकी खर्चों के लिए उसकी मां ने अपनी मंगलसूत्र और 60,000 रुपये दिए।
वह बेंगलुरु के केम्पेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से फ्लाइट पकड़कर टोक्यो पहुंचा।
बुलेट ट्रेन का किराया न होने से उसने 16 स्टेशनों पर सामान्य ट्रेन बदली और आखिरी स्टेशन पर उतरा।
वहां से उसने 8 किलोमीटर पैदल चलकर गंतव्य तक पहुंचा।
वहां सभी तरह के हाई-फाई लोग आए थे।
सबसे आधुनिक ड्रोन वहां थे।
प्रतियोगी बेंज और रोल्स-रॉयस जैसी गाड़ियों से आए थे।
जैसे अर्जुन को सिर्फ पक्षी की आंख दिखती थी, वैसे ही प्रताप ने सिर्फ अपने ड्रोन पर ध्यान दिया।
उसने अपने मॉडल प्रस्तुत किए और ड्रोन का प्रदर्शन किया।
वहां के लोग बोले कि परिणाम चरणों में घोषित होंगे, इंतजार करें।
कुल 127 देशों ने भाग लिया था।
घोषणाएं शुरू हुईं।
किसी भी राउंड में प्रताप का नाम नहीं आया।
वह निराश हो गया और आंखों में आंसू लिए धीरे-धीरे गेट की ओर जाने लगा।
तभी आखिरी घोषणा हुई – "कृपया स्वागत कीजिए मिस्टर प्रताप का, प्रथम पुरस्कार, भारत से.."
तुरंत उसने अपना सामान वहीं छोड़ दिया, जोर-जोर से रोता हुआ मंच पर पहुंचा, अपने माता-पिता, शिक्षकों, दोस्तों और दानदाताओं का नाम लिया।
अमेरिका का दूसरा स्थान वाला झंडा नीचे गया और भारत का प्रथम स्थान वाला झंडा ऊपर गया।
प्रताप कांपते हाथ-पैर और पसीने से भीगे कपड़ों में मंच पर पहुंचा।
उसे पहला पुरस्कार और 10,000 डॉलर (करीब 7 लाख रुपये) मिले।
तीसरा पुरस्कार जीतने वाले फ्रांसीसी लोग उसके पास आए।
"हम तुम्हें 16 लाख रुपये मासिक वेतन, पेरिस में प्लॉट और 2.5 करोड़ की कार देंगे, हमारे देश चलो.." उन्होंने कहा।
प्रताप ने कहा – "मैंने यह सब पैसों के लिए नहीं किया। मेरा उद्देश्य अपने मातृभूमि की सेवा करना है.." और वह धन्यवाद देकर घर लौट आया।
स्थानीय बीजेपी विधायक और सांसद को यह बात पता चली।
वह उसके घर आए, बधाई दी और प्रधानमंत्री मोदी जी से मिलने का मौका दिलवाया।
मोदी जी ने उसे बधाई दी और DRDO में भेजा।
अब वह DRDO के ड्रोन विभाग में वैज्ञानिक नियुक्त है।
वह महीने में 28 दिन विदेशों में यात्रा करता है और DRDO के लिए ड्रोन आपूर्ति के ऑर्डर लाता है..!
"अगर मेहनत तुम्हारा हथियार है, तो सफलता तुम्हारी गुलाम होगी.."
हमारे युवा वैज्ञानिक प्रताप इस भारतीय कहावत का जीता-जागता प्रमाण हैं..!
मेरा भारत महान 🇮🇳
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