होली क्यों मनाते हैं ? पौराणिक मान्यता*

🛕🌞 *। ॐ श्री परमात्मने नमः ।* 🌞🛕

*होली क्यों मनाते हैं ? पौराणिक मान्यता* 

*1-नृसिंह रूप में भगवान इसी दिन प्रकट हुए थे और हिरण्यकश्यप नामक असुर का वध कर भक्त प्रहलाद को दर्शन दिए थे।*

*2-हिन्दू मास के अनुसार होली के दिन से नए संवत की शुरुआत होती है।*

*3-चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के दिन धरती पर प्रथम मानव मनु का जन्म हुआ था।*

*4 -इसी दिन कामदेव का पुनर्जन्म हुआ था। इन सभी खुशियों को व्यक्त करने के लिए रंगोत्सव मनाया जाता है।*

*5 -त्रेतायुग में विष्णु के 8वें अवतार श्री कृष्ण और राधारानी की होली ने रंगोत्सव में प्रेम का रंग भी चढ़ाया। श्री कृष्ण होली के दिन राधारानी के गांव बरसाने जाकर राधा और गोपियों के साथ होली खेलते थे। कृष्ण की रंगलीला ने होली को और भी आनंदमय बना दिया और यह प्रेम एवं अपनत्व का पर्व बन गया।*

*6-भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था।*

*सामाजिक मान्यता* 

*होली बसंत का त्यौहार है और इसके आने पर सर्दी ख़त्म हो जाती है  कुछ हिस्सों में इस त्यौहार का संबंध बसंत की फसल पकने से भी है किसान अच्छी फसल पैदा होने की खुशी में होली मनाते हैं होली को वसंत महोत्सव या काम महोत्सव भी कहते है, इस दिन लोग आपसी कटुता और वैरभाव को भुलाकर एक-दूसरे को इस प्रकार रंग लगाते हैं कि लोग अपना चेहरा भी नहीं पहचान पाते हैं। रंग लगने के बाद मनुष्य शिव के गण के समान लगने लगते हैं जिसे देखकर भोलेशंकर भी प्रसन्न होते हैं।*

*इस दिन शिव और शिवभक्तों के साथ होली के प्यारभरे रंगों का आनंद लेते हैं व प्रेम एवं भक्ति के आनंद में डूब जाते हैं।*

*भगवान नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु का वध!!* 

*होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था अपने बल के दर्प में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य  में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती।* *हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुर्ण  रहता है।*

*सनातन धर्म के सबसे प्राचीन एवं प्रेरणास्पद पर्व होली की आप सभी अंतरंग स्वजनों को अनंत शेष मंगल कामनाएं।   "शुभ होली"*
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