नमन स्वामीभक्त 'शुभ्रक' को.. 🙏*
*कुतुबुद्दीन घोड़े से गिर कर मरा,*
*यह तो सब जानते हैं,*
*लेकिन कैसे?*
*यह आज हम आपको बताएंगे..*
*वो वीर महाराणा प्रताप जी का 'चेतक' सबको याद है,*
*लेकिन 'शुभ्रक' नहीं!*
*तो मित्रो आज सुनिए*
*कहानी 'शुभ्रक' की......*
*सूअर कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना में जम कर कहर बरपाया,*
*और*
*उदयपुर के 'राजकुंवर कर्णसिंह' को बंदी बनाकर लाहौर ले गया।*
*कुंवर का 'शुभ्रक' नामक एक* *स्वामिभक्त घोड़ा था,*
*जो कुतुबुद्दीन को पसंद आ गया और वो उसे भी साथ ले गया।*
*एक दिन कैद से भागने के प्रयास में कुँवर सा को सजा-ए-मौत सुनाई गई..*
*और सजा देने के लिए 'जन्नत बाग' में लाया गया।*
*यह तय हुआ कि*
*राजकुंवर का सिर काटकर उससे 'पोलो' (उस समय उस खेल का नाम और खेलने का तरीका कुछ और ही था) खेला जाएगा..*
.
*कुतुबुद्दीन ख़ुद कुँवर सा के ही घोड़े 'शुभ्रक' पर सवार होकर अपनी खिलाड़ी टोली के साथ 'जन्नत बाग' में आया।*
*'शुभ्रक' ने जैसे ही कैदी अवस्था में राजकुंवर को देखा,*
*उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे।*
*जैसे ही सिर कलम करने के लिए कुँवर सा की जंजीरों को खोला गया,*
*तो 'शुभ्रक' से रहा नहीं गया..*
*उसने उछलकर कुतुबुद्दीन को घोड़े से गिरा दिया*
*और उसकी छाती पर अपने मजबूत पैरों से कई वार किए,*
*जिससे कुतुबुद्दीन के प्राण पखेरू उड़ गए!*
*इस्लामिक सैनिक अचंभित होकर देखते रह गए..*
.
*मौके का फायदा उठाकर कुंवर सा सैनिकों से छूटे और 'शुभ्रक' पर सवार हो गए।*
*'शुभ्रक' ने हवा से बाजी लगा दी..*
*लाहौर से उदयपुर बिना रुके दौडा और उदयपुर में महल के सामने आकर ही रुका!*
*राजकुंवर घोड़े से उतरे और अपने प्रिय अश्व को पुचकारने के लिए हाथ बढ़ाया, तो पाया कि वह तो प्रतिमा बना खडा था.. उसमें प्राण नहीं बचे थे।*
*सिर पर हाथ रखते ही 'शुभ्रक' का निष्प्राण शरीर लुढक गया..*
*भारत के इतिहास में यह तथ्य कहीं नहीं पढ़ाया जाता*
*क्योंकि वामपंथी और मुल्लापरस्त लेखक अपने नाजायज बाप की ऐसी दुर्गति वाली मौत बताने से हिचकिचाते हैं!*
*जबकि फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में कुतुबुद्दीन की मौत इसी तरह लिखी बताई गई है।*
*नमन स्वामीभक्त 'शुभ्रक' को.. 🙏*
*पढ़कर सीना चौड़ा हुआ हो तो भेज देना सबकाे......*
👏🌷
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