अवध सजी रघुनंदन आवैं।
अवध सजी रघुनंदन आवैं।
घर घर जलै दीप शशि जोती बन्दनवार सजावैं।।
आजु उमगि सरजू जल उफनै,नगर सरस करि डारै।
उछरि धार मारग बढ़ि धोवै,राघव राह संवारै।।
छिरकैं अतर सुंगध राहि,जन मिलि मिलि राह बहोरैं।
विकल सकल नर नारी आकुल,जहं तहं धावैं दौरैं।।
घर मन्दिर प्रासाद सजावैं,तोरन जोहि लगावैं।
पुष्प बहुल विधि गंध बटोरैं, प्रभु मारग बिछरावैं।।
कोउ ब्रत राम दरस कहुं राखे,पारन दिन अब आयो।
उमगि हरसि मिलि जन सब नाचैं, रघुवर हृदय बसायो।।
नव नव वसन पहिनि जन डोलैं नव आभूसन नारी।
बाल वृद्ध बनि दूलहा घूमैं,नाचि रहैं वनचारी।।
मंगल थाल सजावैं भामिनि,द्विज ऋजु साम उचारैं।
महादेव गौरी संग आवैं,राम चरन उर धारैं।।
काल निसा सम बीते चौदह बरिस, भानु अब आवैं।
........अवध सजी रघुनंदन आवैं।।
तीनौं मातु खड़ी पग जोहैं द्वार होत भिनसारे ।
अनुज दोउ,गुरु सचिव विकल सब उमगि न परत सम्हारे।।
भरत ठाड़ि,पुनि दौरि परत,पुनि पूछत कहं लौ आये।
अश्रु झरत अनवरत भरत दृग कम्पित तन,हरसाये।।
अन्तरिक्ष गन्धर्व,देव,मुनि ठाढ़े राम अगोरैं।
पूर्ण चन्द्र भइ आजु अमावस,नभ ससि नखत बहोरैं।।
अलकपुरी सम भई अवध अजु विहंसि दीपावलि आई।
जगमग नगर बाट चौराहे,परिछैं सिय रघुराई।।
देखत दास नयन बिनु राघव कृपा आस हिय राखे।
जिमि सुख मूक बोलि नहिं पावैं राम चरन रस चाखे।।
अवध गगन अधियारो छाटैं,राम भानु प्रकसावैं।
अवध सजी रघुनंदन आवैं।।
श्री हरि ॐ
जय सियाराम 🙏🏻 जय श्री मन नारायण
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