आराधना का स्वरुप ||*
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*26 - 10 - 2024*
*|| आराधना का स्वरुप ||*
*मंदिर में पूजा करने के साथ-साथ अपने प्रत्येक कर्म को भी पूजा बनाना सीखिए। जीवन को इतनी निष्ठा, दिव्यता एवं उच्चता के साथ जिया जाना चाहिए कि हमारा प्रत्येक कर्म ही धर्म बन जाए। धर्म को कर्म से अलग करने जैसा भी नहीं है। धर्म को अलग से करने की अपेक्षा हमारा प्रत्येक कर्म ही धर्ममय बन जाए इस बात के लिए सदैव प्रयासरत रहना चाहिए।।*
*हमारा बोलना, सुनना, देखना और सोचना प्रत्येक आचरण इतना विवेकपूर्ण, ज्ञानमय एवं मर्यादित हो कि ये सब अनुष्ठान जैसे ही लगने लग जाएँ। धर्म के लिए अलग से कर्म करने की आवश्यकता नहीं है अपितु जो हो रहा है, उसी को ऐसे पवित्र भाव से करें कि वही धर्म बन जाए। हमारा प्रत्येक कर्म, हमारा व्यवहार एवं हमारा आचरण धर्ममय बन सके यही तो प्रभु आराधना का स्वरूप है।।*
*🙏🏽🌳🌺 जय द्वारकाधीश* 🌺🌳🙏🏽
*🙏🏽🪴🪸 जय श्रीकृष्ण* 🪸🪴🙏🏽
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