मां

वृद्धाश्रम के दरवाजे पर हर दिन सुबह के वक्त एक कार आकर रुकती थी। उसमें से एक युवा व्यक्ति उतरता, और वृद्धाश्रम के बगीचे में बैठी एक बुजुर्ग महिला के पास जाकर बैठ जाता। दोनों के बीच धीमी-धीमी आवाज़ में बातें होतीं, और फिर कुछ देर बाद वह युवक उठकर चला जाता। यह दृश्य अब वृद्धाश्रम के सभी निवासियों के लिए एक परिचित और रोजमर्रा का हिस्सा बन गया था। धीरे-धीरे, सबको यह भी पता चल गया कि वह बुजुर्ग महिला, उस युवक की माँ है।

आज सुबह का दृश्य भी कुछ वैसा ही था, लेकिन आज युवक अपनी माँ के सामने घुटनों के बल बैठा था, बार-बार उनके पैरों को पकड़कर माफी मांग रहा था। वृद्धाश्रम के गेट कीपर, रघु, जो हमेशा अपने काम में तल्लीन रहता था, आज इस दृश्य को देखकर विचलित हो गया। उसने पास ही बैठे एक बुजुर्ग व्यक्ति से कहा, "लोग कहते हैं कि औलाद बदल जाती है, लेकिन यहाँ तो कुछ और ही कहानी नजर आ रही है।"

बुजुर्ग व्यक्ति, जो जीवन के अनुभवों से समृद्ध था, हल्की मुस्कान के साथ बोला, "जो तुम्हारी आंखें देख रही हैं, वह पूरा सच नहीं है। यहाँ आने वाले हर व्यक्ति की एक कहानी होती है, और उस कहानी में बहुत कुछ छिपा होता है।"

जब युवक वहां से चला गया, तो रघु अपने मन की जिज्ञासा को रोक नहीं सका और वह सीधे उस बुजुर्ग महिला के पास पहुंच गया। "ताई," उसने थोड़ी हिचकिचाहट के साथ पूछा, "जो लड़का आपसे मिलने आता है, वह आपका बेटा है न?"

बुजुर्ग महिला ने सिर हिलाकर सहमति दी, लेकिन कोई शब्द नहीं बोले।

रघु ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, "ताई, आपका बेटा तो बहुत अच्छा है। देखिए, कितनी मिन्नतें कर रहा है। क्या वह आपको यहां से ले जाना चाहता है?"

बुजुर्ग महिला ने एक बार फिर से सिर हिला दिया, लेकिन उसके चेहरे पर एक गहरी उदासी छाई हुई थी। अब तक, आसपास कुछ और बुजुर्ग महिला-पुरुष आकर उनके पास खड़े हो गए थे।

एक बुजुर्ग व्यक्ति, जो अपने अनुभवों का ढेर अपने कंधों पर उठाए था, बोला, "कहते हैं कि औरत वसुधा की तरह धैर्यवान होती है, लेकिन आपको देखकर ऐसा नहीं लगता।"

बुजुर्ग महिला, जो अब तक सबकी बातें चुपचाप सुन रही थी, किसी को कोई जवाब नहीं दे रही थी। एक और व्यक्ति ने कहा, "अब जमाना बदल गया है। सहनशीलता बीते दिनों की बात हो गई है। आजकल की महिलाएं भी पुरुषों की तरह स्वतंत्रता चाहती हैं। हर कोई आजादी चाहता है—किसी को माँ-बाप से और किसी को अपने बच्चों से!"

यह सब सुनकर बुजुर्ग महिला की आंखों में आंसू आ गए, लेकिन उसने फिर भी अपने होंठ सी लिए।

अगले दिन फिर वही कार वृद्धाश्रम के दरवाजे पर आकर खड़ी हो गई। इस बार उस युवक के साथ एक महिला भी थी, जो अपनी गोद में एक छोटे से बच्चे को लेकर आई थी। दोनों वृद्धाश्रम के अंदर आए और महिला ने बच्चे को बुजुर्ग महिला की गोद में रखते हुए, पैरों पर गिरकर रोते हुए कहा, "माँजी, हमें माफ कर दीजिए। हमारे साथ घर चलिए, आपको अपने पोते की कसम है।"

इस दृश्य को देखकर रघु, जो हमेशा से बुजुर्ग महिला के प्रति सम्मान रखता था, अपने आंसू रोक नहीं पाया। उसने गुस्से में आकर कहा, "ताई नहीं जाना चाहती, तो क्यूँ उन्हें जबरदस्ती ले जाना चाहते हो? तुम जैसे बच्चे भगवान सबको दें। वर्ना आजकल तो बच्चे जानबूझकर माँ-बाप को वृद्धाश्रम में छोड़ जाते हैं।"

इस बार बुजुर्ग महिला का धैर्य टूट गया। उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। अपने आंचल से आंसू पोंछते हुए उसने रुंधे गले से कहा, "आप शायद नहीं जानते रघुजी! जब मेरे पति इस दुनिया से चले गए, तो मेरी सारी जमा-पूंजी इन लोगों ने ले ली। रोज़ एक निवाले के लिए मुझे घंटों इंतजार करना पड़ता था। ये लोग मुझे दिन-रात खरी-खोटी सुनाते, और रातों में खून के आंसू रुलाते। अंत में, इन्होंने मुझसे कहा कि या तो मैं उनकी शर्तों पर चलूं या घर छोड़ दूं। मैंने घर छोड़ दिया, क्योंकि मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था। आज ये लोग माफी मांगने नहीं आए हैं। इन्हें मुझसे कोई प्रेम नहीं, बल्कि इन्हें बच्चे को संभालने के लिए एक आया चाहिए। इसीलिए यह नाटक आपके सामने कर रहे हैं।"

बुजुर्ग महिला की इस बात ने वहां खड़े सभी लोगों को सन्न कर दिया। रघु, जो हमेशा से लोगों के प्रति दयालु रहा था, आज इस सचाई से बेहद दुखी हो गया। उसने सोचा, जो आँखें देख रही थीं, वह सच नहीं था। कभी-कभी, जो दिखाई देता है, वह सच्चाई से बहुत दूर होता है। आज, वृद्धाश्रम के हर निवासी ने एक कड़वी सच्चाई को समझा—कि जब रिश्ते स्वार्थ की बुनियाद पर टिकते हैं, तो वे केवल एक दिखावा बनकर रह जाते हैं।

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