शनिमहाराज की सम्पूर्ण कथा।

शनिमहाराज की सम्पूर्ण कथा। 
〰〰🌼〰🌼〰🌼〰〰
क्यों है शनिमहाराज के लिये शनिवार का महत्व?

शनिदेव, सूर्य के पुत्र तथा यमराज के भाई हैं। शिवजी इनके गुरु हैं तथा शिवजी की आदेशानुसार ही ये दुष्टों को दण्ड देने का कार्य करते हैं। लेकिन कभी भी बेकसूर मनुष्यों को दण्ड नहीं देते। शिवजी तथा हनुमान जी के भक्तों को शनिदेव कभी कष्ट नहीं पहुँचाते।

शनिदेव का अवतरण  पुराणों के अनुसार सूर्यदेव की पाँच पत्नियाँ हैं– प्रभा, संध्या, रात्रि, बड़वा और छाया। संध्या की तीन संतानें हैं— वैवस्वत मनु, यम और यमुना।

 ऐसा कहा जाता है कि सूर्यदेव की पत्नी संध्या, सूर्य के तेज को नहीं सहन कर पाती थीं ।

 जिससे उसे बहुत कष्ट सहना पड़ता था और वह अपने को अंतर्निहित करने का विचार करने लगी। उसने अपने ही रूप रंग जैसी एक प्रतिरूप स्त्री बनायी और उसे “छाया” नाम दिया । 

इसके बाद संध्या, उस छाया को सूर्यदेव के पास छोड़कर, स्वयं बड़वा (घोड़ी) के रूप में सुमेरु पर्वत पर तपस्या को चले गई। 

जाते हुए संध्या ने छाया से वचन लिया कि वह उसके बच्चों का ख्याल रखेगी तथा इस रहस्य को सूर्य के समक्ष प्रकट नहीं करेगी। 

छाया ने कहा – “सूर्य जब तक मेरा केश पकड़कर न पूछेंगे, तब तक मैं नहीं कहूंँगी ।” बहुत समय तक सूर्य छाया को ही संध्या समझते रहे। छाया के सावर्णि मनु, शनैश्चर (शनि), ताप्ती नदी और विष्टी नाम की चार संताने हुईं।

कुछ समय बीतने पर छाया ने अपने और संध्या के बच्चों में भेद करना शुरु कर दिया। इस को वैवस्व मनु इस भेद को नहीं सहन कर पाये और अपने पिता सूर्यदेव से शिकायत की। 

तब सूर्यदेव ने संध्या रूपी छाया से इसका कारण पूछा, लेकिन संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पाने पर, उसके बाल पकड़ लिये और क्रोधपूर्वक सत्य बतलाने को कहा। 

तब संध्या रूपी छाया ने कहा- “आपके वास्तविक पत्नी संध्या अपने स्थान पर मुझे छोड़कर, स्वयं बड़वा का रूप धारण कर कहीं चली गई है।” इसके बाद से ही सूर्यदेव ने छाया और उसके पुत्रों का तिरस्कार करना प्रारम्भ कर दिया ।

शनिदेव के काले रंग और कुरूप होने के कारण, सूर्यदेव हमेशा उसका तिरस्कार करते रहते थे। सूर्यदेव ने अपने पुत्रों के वयस्क हो जाने पर एक-एक ग्रह का स्वामित्व दे दिया। 

शनि ग्रह का आधिपत्य शनिदेव को मिला। परंतु शनि देव सभी ग्रह पर अपना अधिकार चाहते थे । इसके लिये शनिदेव ने सभी ग्रह पर आक्रमण की योजना बनाई । 

जब सूर्य के समझाने भी शनिदेव नहीं माने तब सूर्यदेव शिव जी के पास गये। शिव जी ने अपने गणों को शनिदेव को समझाने के लिये भेजा और नहीं मानने पर दण्ड देने के लिये भी कहा। 

शनिदेव ने सभी गणों से युद्ध कर उन्हें बंदी बना लिया। यह देखकर शिव जी को अत्यधिक क्रोध आया और शनिदेव को अपने त्रिशूल से मूर्छित कर दिया।

पुत्र की यह दशा देखकर, सूर्यदेव शिवजी की अराधना करने लगे और शनिदेव को जीवित करने को कहा। अत: शिवजी ने सूर्यदेव की अराधना से प्रसन्न होकर शनिदेव को जीवित कर दिया। जीवित होकर, शनिदेव ने शिव जी की अनेकों तरह से स्तुति की और उनसे विनती की कि शिवजी, शनिदेव को अपना शिष्य बना लें। 

शिवजी ने शनिदेव को अपना शिष्य बना लिया और अनेकों उपदेश दिये। शिवजी ने शनिदेव को आदेश दिया कि अपने शक्ति का अनुचित उपयोग न करें। संत-पुरुषों को कभी तंग न करें, परंतु दुष्ट पापी को उचित दण्ड अवश्य दें। शिवजी ने शनिदेव को पापियों को दण्ड देने के कार्य पर नियुक्त किया ।

यमराज और यमुना के भाई  शनिदेव की माता छाया, संध्या की ही प्रतिरूप हैं  इसलिये शनिदेव को यमराज और यमुना का सगा भाई कहते हैं । शनिदेव की नियमित अराधना करने वालों पर यमराज भी अपनी कृपादृष्टि बनाये रखते हैं।

हनुमानजी के सखा  रामायण में ऐसा उल्लेख है कि रावण ने सभी ग्रहों के साथ शनिदेव को भी काल कोठरी में बंद कर रखा था। जब हनुमान जी सीता माता की खोज करते हुए लंका पहुँचे। तब उन्होंने शनिदेव सहित अन्य बंदियों को भी काल-कोठरी से मुक्त करवाया था। 

इस पर प्रसन्न हो कर शनिदेव ने हनुमान जी से कहा- हे महावीर! आपने मुझे बंधन मुक्त किया है। मैं आपके भक्तों पर सदैव दयापूर्ण दृष्टि रखँगा और उनके बंधनों को काटता रहँगा। आपने मुझे बंधन्मुक्त कर मेरी शक्तियाँ लौटा दी हैं।अब मैं लंका और रावण पर कुदृष्टि डालकर उसे बर्बाद करता हूंँ।

इसी कारण से शनिवार का दिन हनुमान जी की पूजा-अराधना का भी विशिष्ट दिन है।
〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

Comments

Popular posts from this blog

❤Love your Heart❤

Dil To Hai Dil”

Secret Mantra For Happiness