समिक्षार्थ
क्यों न गम को दफ़ा किया जाए ,
जिंदगी फ़लसफा किया जाए..
छोड़ कर बेइमानियों का घर,
फर्ज खुद का अता किया जाए।
जिंदगी भी कही मिल जाएगी,
क्यों सफर से गिला किया जाए।
मसले तो होते हल के ही खातिर
बैठ गर मशवरा किया जाए..
लोग खुशियाँ जलाते औरों के,
फूंक कर गम मजा किया जाए।
नफरतों के दरख्त कलम कर चलो
इक एसा भी ख़ता किया जाए।
पूछ हालात हाल अपनों का,
अपने से कुछ वफ़ा किया जाए।
*ममता*
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