बस्तर - द नक्सल स्टोरी Preview
किसी अपने की लाश के टुकड़ों को सिर पर गठरी में ढोना कैसा लगता होगा... कभी सोचा है?
जब उस बिलखती निर्दोष स्त्री के पति को जिंदा रहते कुल्हाड़ी से काट- काट कर 36 टुकड़ों में छितराया जा रहा था... वो देख रही थी! बेटे को नक्सली पहले ही उठाकर ले जा चुके थे और बेटी के जिंदा बचने की शर्त यही कि पति के खून से माओवादियों के विजय स्तंभ को रंगना पड़ेगा... वह भी अपने हाथों से! और जुर्म क्या था? अजी गांव के विद्यालय में तिरंगा लहराया था।
यही ’लाल सलाम’ है।
असल में ‘लाल’ और ‘सलाम’ दोनों जुड़वा हैं। वो कश्मीर फाइल्स में पति के खून से सने चावल खिलाने की असली घटना का चित्रण याद है? या Isis द्वारा एक यजीदी मां को उसका बच्चा पकाकर खिलाने के समाचार याद हैं? अब ‘बस्तर’ में ‘लाल’ की कारस्तानी देखिए।
दशकों तक हम अपने शहर में बैठकर आराम से चाय पीते हुए अख़बार पढ़ते रहे कि आज यहां और कल वहां नक्सलियों ने ब्लास्ट कर crpf का काफिला उड़ाया.. इतने लोग भूने... कोई गांव जलाया... लेकिन असल में छितरी देह से बहता खून कैसा दिखता है और घने जंगल के बीच इन वहशियों के बीच में फंस जाना क्या होता है - ‘बस्तर ’ समझाएगी।
आपके और हमारे बीच साहित्य गोष्ठियों में, यूनिवर्सिटी में, किताबों में बौद्धिकता और नफासत का लबादा ओढ़े घूमता यह लाल पिशाच असल में कैसा है, सुदीप्तो सेन की ’ बस्तर ’ नामक फिल्म बड़ी सटीकता से बताती है।
सुदीप्तो सेन की पिछली फिल्म ‘द केरला स्टोरी‘ ने Luv ☪️ आतंक को परत दर परत उधेड़ कर रख दिया था। अब उनके निर्देशन में बस्तर की चीखें आप स्पष्ट सुन पाएंगे।
छत्तीसगढ़ के नायक , सलवा जुडूम को आकार देने वाले महेंद्र कर्मा याद हैं? 25 मई 2013 को उनकी 28 लोगों सहित जघन्य हत्या याद है? उसके बाद लाशों के इर्द गिर्द घंटों तक हुआ नाच याद है? सुदीप्तो ने यह सबकुछ परदे पर हुबहू उतार दिया है।
’बस्तर’ फिल्म मनोरंजन के लिए नहीं है। यह निर्ममता से धड़ाधड़ सच उघाड़ती जाती है। यदि आप आंखें, कान और दिमाग थोड़ा चौकस रखते हैं तो हर एक पात्र को आप पहचान लेंगे। ये वही कथित अंतरराष्ट्रिय सेलिब्रिटी और विद्वान हैं जो एक समय हमारी लाशों का मंच सजाते थे और उसपर चढ़कर मैग्सेसे, बुकर, नोबल, पुलित्जर बटोरा करते थे। इसमें एक कथित गांधीवादी पात्र भी है। असल जिंदगी में उस दरिंदे से मैं मिल चुकी हूं। वह अपने चरखे में हमारे देश के जवानों की अंतड़ियां कातकर नाम और दाम कमाता आया है।
यह फिल्म टुकड़े - टुकड़े गैंग को करोड़ों की रसद पहुंचाने वाले विदेशी स्त्रोतों के नाम खुलकर बताती है। ’लाल’ और ’सलाम’ की गलबहियों को उजागर करती है। भ्रष्ट राजनीतिज्ञों और बुद्धिजीवियों की हमबिस्तरी दिखाती है।
उन बिखरे जनजातीय परिवारों की त्रासदी सोचकर देखिए जहां अपहरण किया बच्चा अब अपने ही पिता के हत्यारों में जा मिला है।
निडर IPS नीरजा माधवन को अदा शर्मा ने जीवंत कर दिया है। स्वर्गीय महेन्द्र कर्मा को ‘राजेंद्र कर्मा’ के रुप में जीवंत करने वाले किशोर कदम की आंखों में इस लाल आतंक से उपजी टीस झलकती है। कुल्हाड़ी से कटकर मरते हुए मिलिंद की बेबसी और हिम्मत... दोनों हृदय को बेध जाती है।
फिल्म में बहुत कुछ और कहा जा सकता था... आगे जरूर कहा जाएगा। कॉमियों और कौमियों के पाप असंख्य हैं।
बस्तर 15 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज होगी। (मैंने 13 मार्च को प्रीमियर में देखी।) फिल्म को कौमी खून- खच्चर के कारण A सर्टिफिकेट मिला है इसलिए बच्चों को न ले जाएं लेकिन 18 वर्ष या उससे ऊपर के जितने युवा हैं उन्हें जरूर दिखाइए कि कैसे ये “love is love ” वाले कथित लेफ्ट लिबरल हमारे भारत का खून पीकर चटखारे लेते रहे।
दंडकारण्य की पवित्र भूमि को राक्षसों के आतंक से दोबारा मुक्ति मिलना अवश्यंभावी है।
(साभार तनया प्रफुल्ल गडकरी)
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