कमाल है ना ?

कमाल है ...
आँखे तालाब नहीं, फिर भी, भर आती हैं !
तमन्नाएँ जिस्म नहीं फिर भी मर जाती हैं  !

होंठ कपड़ा नहीं , फिर भी, सिल जाते हैं !
दुःख कोई मांगता नहीं , फिर भी मिल जाते हैं !

किस्मत सखी नहीं, फिर भी, रुठ जाती है !
हिम्मत  लाठी नहीं, फिर भी टूट जाती है  !

बुद्वि लोहा नहीं, फिर भी, जंग लग जाती है !
मेहनत हिना तो नहीं फिर भी रंग लाती  है  !

दुश्मनी बीज नही, फिर भी, बोयी जाती है  !
आस दौलत तो नहीं फिर भी खोई जाती है  !

आत्म-सम्मान शरीर नहीं, फिर भी घायल हो जाता है !
और इन्सान मौसम तो नही, फिर भी बदल जाता है !
  कमाल है  ना  ?

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