एक कविता
आज एक कवि मित्र ने इस कविता के लिए ऊपर की चार पंक्तियां दी थीं कि इन्हें लेकर तीन अंतरों का गीत लिखना है, तो उन्हें लिखकर भेजा - सोचा यहां भी सांझा कर लें🙂🙏💐
प्रिये तुम्हारे मोहजाल में
मैं खुद को ही भूल रहा हूं ।
नहीं इधर का, नहीं उधर का,
जीवन मध्ये झूल रहा हूं ।।
बहुत बुलाना तुमको चाहा
बहुत मनाना तुमको चाहा ।
लेकिन तुमने एक न मानी
मुझे भूल जाना ही चाहा ।।
अब यादों की भूल भुलैया
में ख़ुद को ही भूल रहा हूं ।
नहीं इधर का, नहीं उधर का
जीवन मध्ये झूल रहा हूं ।।
काश कभी तो मुड़कर तुमने
एक नज़र भर देखा होता ।
कुछ विश्वास मेरे संकल्पों
पर भी तो ठहराया होता ।।
टूट गए संकल्प प्रेम के
अब ख़ुद को ही भूल रहा हूं ।
नहीं इधर का, नहीं उधर का
जीवन मध्ये झूल रहा हूं ।।
मन में आस लिए बैठा हूं
एक अरदास लिए बैठा हूं ।
कभी कहीं तुम मिल जाओगे
ये विश्वास लिए बैठा हूं ।।
इसी आस अरदास में खोया
मैं ख़ुद को ही भूल रहा हूं ।
नहीं इधर का, नहीं उधर का
जीवन मध्ये झूल रहा हूं ।।
----- कात्यायनी
अंहकार सत्य सुनने की क्षमता खत्म कर देता है
Comments
Post a Comment