शौर्य सप्ताह" और "शोक सप्ताह"

20 दिसम्बर से 27 दिसम्बर तक इन्हीं 7 दिनों में गुरु गोविंद सिंह जी का पूरा परिवार धर्म रक्षा के लिए बलिदान हो गया था। माता गूजरी ने भी ठन्डे बुर्ज में प्राण त्याग दिए। यह सप्ताह हमारे लिए "शौर्य सप्ताह" और "शोक सप्ताह" है लेकिन हम "क्रिसमस सप्ताह" मनाते हैं

वहशी वजीर खां ने पूछा, इस्लाम कबूल करोगे या नहीं?

6 साल के छोटे साहिबजादे फतेह सिंह ने कहा, क्या मुसलमान बन जाने पर कभी नहीं मरेंगे?

वजीर खां अवाक रह गया और उसके मुँह से एक शब्द नहीं लिकला

साहिबजादे ने कहा कि जब मुसलमान बनकर भी मरना ही है तो अपने धर्म की खातिर क्यों न मरें

वहशी दरिंदे वजीर खां ने दोनों साहिबजादों को दीवार में चिनवाने का आदेश दे दिया

दीवार बनने लगी और जब दीवार 6 वर्षीय फ़तेह सिंह की गर्दन तक आ गयी तब 8 वर्षीय जोरावर सिंह रोने लगे

फ़तेह सिंह ने कहा, जोरावर भैया तुम क्यों रो रहे हो

जोरावर सिंह ने कहा, मैं इसलिए रो रहा हूँ कि मैं बड़ा हूं लेकिन धर्म के लिए तुम हमसे पहले बलिदान दे रहे हो

गुरु गोविंद सिंह जी का पूरा परिवार 20 दिसंबर से 27 दिसंबर के बीच मात्र एक सप्ताह में धर्म रक्षा के लिए बलिदान हो गया और हमारे नेता अभिनेता लेखक बुद्धिजीवी पत्रकार कलमकार उन्हें याद करने की बजाय इस सप्ताह मौज मस्ती करने विदेश घूमते हैं

पहले पंजाब में इस सप्ताह सब लोग ज़मीन पर सोते थे क्योंकि माता गुजरी देवी ने 25 दिसम्बर की रात दोनों साहिबजादों के साथ वजीर ख़ाँ की गिरफ्त में सरहिन्द के किले में ठंडी बुर्ज़ में गुजारी थी और 26 दिसम्बर को  दोनो बच्चे बलिदान हो गये थे और 27 दिसंबर को माता ने भी अपने प्राण त्याग दिए थे

गुरु परिवार के साथ साथ बाबा मोती राम मेहरा जी और सेठ टोडर मल जी को भी याद करिए। मां गुजरी और साहबजादो को गर्म दूध पिलाने के कारण वहशी दरिंदो ने उनके परिवार को कोल्हू में डाल कर मार दिया था। आज भी दूध का लंगर लगता है। साहबजादो का अंतिम संस्कार करने लिए जमीन के बदले सेठ टोडर मल जी ने अपनी सारी संपत्ति वजीर खान को दे दिया था

लेकिन अंग्रेजों की नकल के कारण हमने अपने पूर्वजों के बलिदान को मात्र 300 वर्ष में भुला दिया

आइए, उन सभी ज्ञात-अज्ञात महावीर-बलिदानियों को याद करें जिनके कारण आज सनातन संस्कृति बची हुई है

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