बुद्धि की शुद्धि

*॥ बुद्धि की शुद्धि ॥*
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*जिस प्रकार भोर की प्रथम किरणों के साथ कुछ पुराने फूल झड़ जाते हैं और नयें फूल खिल उठते हैं व प्रकृति को सुवासित करते हैं। कुछ सूखे पत्ते पेड़ से जमीन पर गिर जाते हैं और नयीं कोंपलें फूट पड़ती हैं व प्रकृति को श्रृंगारित करती हैं।उसी प्रकार एक नया दिन एक नईं ऊर्जा और एक नयें विचार के साथ आता है।*

एक नया दिन आता है तो साथ में नया उल्लास और नईं आश लेकर भी आता है ताकि *हम अपने जीवन को नयें विचारों से सुवासित एवं उल्लासित कर सकें। मानव मन को भी प्रतिदिन सद्विचार और सत्संग रूपी साबुन से स्वच्छ करने की जरूरत होती है ताकि विचारों की कलुषिता का मार्जन हो सके।*

*यदि बुद्धि को परिमार्जित करते हुए उसमें प्रतिदिन साफ करके कुछ श्रेष्ठ विचार, कुछ सद्विचार न भरे जाएं तो हमारे वही कलुषित विचार जीवन के लिए जहर बनकर उसकी आत्मिक उन्नति में बाधक बन जाते हैं। सदा सत्संग के आश्रय में रहो ताकि हृदय की निर्मलता और विचारों की पवित्रता बनी रहे।*

.              *🚩जय सियाराम 🚩*

साभार गीता प्रेस गोरखपुर

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