बूढ़े न हों. वरिष्ठ बनें
*दोनों के अंतर को समझें और जीवन का आनंद लें।*
*इंसान को उम्र बढ़ने पर." बूढ़ा" नहीं बल्कि. 'वरिष्ठ " बनना चाहिए। "*
*" बुढ़ापा "...अन्य लोगों का आधार ढूँढता है,*
*'वरिष्ठता "..लोगों को आधार देती है.*
*'बुढ़ापा ".. छुपाने का मन करता है,*
*वरिष्ठता "... उजागर करने का मन करता है ।*
*"बुढ़ापा " अहंकारी होता है,*
*"वरिष्ठता".अनुभव संपन्न,विनम्र व संयमशील होती है।*
*"बुढ़ापा"..नई पीढ़ी के विचारों से छेड़छाड़ करता है,*
*" वरिष्ठता "..युवा पीढ़ी को बदलते समय के अनुसार, जीने की छूट देती है।*
*"बुढ़ापा"...."हमारे ज़माने में ऐसा था "की रट लगाता है,*
*"वरिष्ठता”....बदलते समय से अपना नाता जोड़ती है और उसे अपना लेती है।*
*"बुढ़ापा".... नई पीढ़ी पर अपनी राय थोपता है,*
*"वरिष्ठता"... तरुणपीढ़ी की राय समझने का प्रयास करती है।*
*"बुढ़ापा ".... जीवन की शाम में अपना अंत ढूंढ़ता है,*
*"वरिष्ठता"...जीवन की शाम में भी एक नए सवेरे का इंतजार करती है तथा युवाओं की स्फूर्ति से प्रेरित होती है*
*"बुढ़ापा नई पीढ़ी की बातों को समझने का प्रयास नहीं करता*
*" वरिष्ठता ".... तरुणपीढ़ी की राय समझने का प्रयास करती है।*
*"बुढ़ापा"....जीवन की शाम में अपना अंत ढूंढ़ता है,*
*वरिष्ठता ".... जीवन की शाम में भी एक नए सवेरे का इंतजार करती है तथा युवाओं की स्फूर्ति से प्रेरित होती है*
*" वरिष्ठता" और "बुढ़ापे "*
*के बीच के अंतर को ....* *गम्भीरतापूर्वक समझकर,*
*जीवन का आनंद पूर्ण रूप से लेने में सक्षम बनिए।*
*उम्र कोई भी हो.....सदैव फूल की तरह खिले रहिए ...... उमंग उत्साह में रहिए... और दूसरों के जीवन के*
*लिए प्रेरणा बनिए.......💐🙏*
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