मिडिल-क्लास

किसने लिखा है पता नहीं.....
पर लिखने वाले ने बहुत ही गज़ब का लिखा है.....
बहुत ही बारीकी से observations किये हैं.....
एक एक बात सोलह आना सच लिखी है......👌

       "मिडिल-क्लास"  का होना भी
        किसी वरदान से कम नहीं है.
          कभी बोरियत नहीं होती.

      जिंदगी भर कुछ ना कुछ आफत
           लगी ही रहती है, 

न इन्हें तैमूर जैसा बचपन नसीब होता है 
  न अनूप जलोटा जैसा बुढ़ापा, फिर भी 
         अपने आप में उलझते हुए
                व्यस्त रहते हैं.
       मिडिल क्लास होने का भी 
           अपना फायदा है.
  चाहे BMW का भाव बढ़े या AUDI का 
  या फिर नया i phone लाँच हो जाये,
         कोई फर्क नहीं पड़ता.
        मिडिल क्लास लोगों की 
   आधी जिंदगी तो ... झड़ते हुए बाल
     और बढ़ते हुए पेट को रोकने में ही 
                  चली जाती है.

  

         मिडिल क्लास लोगों की 
            आधी ज़िन्दगी तो 
       "बहुत महँगा है"  बोलने में ही 
               निकल जाती है.

        इनकी "भूख" भी ... 
   होटल के रेट्स पर डिपेंड करती है. 
      दरअसल महंगे होटलों की मेन्यू-बुक में मिडिल क्लास इंसान
       'फूड-आइटम्स' नहीं बल्कि 
    अपनी "औकात" ढूंढ रहा होता है.
 इनके जीवन में कोई वैलेंटाइन नहीं होता.
       "जिम्मेदारियाँ"  जिंदगी भर
   परछाईं की तरह पीछे लगी रहती हैं.

     मध्यम वर्गीय दूल्हा-दुल्हन भी 
   मंच पर ऐसे बैठे रहते हैं मानो जैसे 
         किसी भारी सदमे में हों.

          अमीर शादी के बाद
      चलता बनते हैं , और 
  मिडिल क्लास लोगों की शादी के बाद 
           टेन्ट बर्तन वाले पीछे पड़ जाते हैं.

         मिडिल क्लास बंदे को 
       पर्सनल बेड और रूम भी 
  शादी के बाद ही अलाॅट हो पाता है.

    एक सच्चा मिडिल क्लास आदमी
              गीजर बंद करके 
       तब तक नहाता रहता है 
         जब तक कि नल से 
   ठंडा पानी आना शुरू ना हो जाए.

  रूम ठंडा होते ही AC बंद करने वाला
 मिडिल क्लास आदमी चंदा देने के वक्त 
       नास्तिक हो जाता है, और 
    प्रसाद खाने के वक्त आस्तिक.
      दरअसल मिडिल-क्लास तो 
   चौराहे पर लगी घण्टी के समान है, 
     जिसे लूली-लगंड़ी, अंधी-बहरी, 
           अल्पमत-पूर्णमत 
        हर प्रकार की सरकार 
        पूरा दम से बजाती है.
 मिडिल क्लास को आज तक बजट में 
     वही मिला है, जो अक्सर हम
     🔔  मंदिर में बजाते हैं. 🔔

        फिर भी हिम्मत करके 
          मिडिल क्लास आदमी 
             पैसा बचाने की
       बहुत कोशिश करता है,
                 लेकिन 
      बचा कुछ भी नहीं पाता.
   हकीकत में मिडिल मैन की हालत 
         पंगत के बीच बैठे हुए
     उस आदमी की तरह होती है 
       जिसके पास पूड़ी-सब्जी 
   चाहे इधर से आये, चाहे उधर से
         उस तक आते-आते 
           खत्म हो जाती है.
      मिडिल क्लास के सपने भी
             लिमिटेड होते हैं.
 "टंकी भर गई है, मोटर बंद करना है"
      गैस पर दूध उबल गया है,
        चावल जल गया है,
    इसी टाईप के सपने आते हैं.

     दिल में अनगिनत सपने लिए 
         बस चलता ही जाता है ...
                 चलता ही जाता है.
                 और चला जाता है।
*ये मिडिल क्लास आदमी***🙂🙂🙂🙏🙏

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