प्राथमिक शाला का शिक्षक
अपन ऊपर से नीचे परीक्षण कर तय करें कि कौन क्या पढा़ता है।
आप काॅलेज और हायर सेकेण्डरी शिक्षक से पूछिये!
सर आप क्या पढ़ाते हैं..?
जबाव मिलेगा,
हिंदी साहित्य,
आप,
फिजिक्स
और आप,
केमेस्ट्री,
आप सर,
मैथ्स,
सर जी आप,
बाॅटनी,
आप महोदय,
जूलाॅजी
प्रिंसिपल सर से भी पूछिये।
सर आप क्या पढ़ाते हैं..?
जी हम कुछ भी नहीं पढ़ाते कोई विषय नहीं।
हम केवल इन्हें पढ़ाते हुये देखते हैं बस।
और फिर आप धीरे से प्रायमरी शिक्षक से पूछिये,
सर आप क्या पढ़ाते हैं..?
अर्रा कर कहेंगे, आल सब्जेक्ट।
अब सोचिए सब लोग केवल एक-एक विषय पढ़ाते हैं, वो भी पढ़े-पढा़ये लड़के-लड़कियों को और प्राचार्य जी तो एक भी विषय नहीं पढ़ाते।
और प्रायमरी शिक्षक सारे के सारे विषय पढ़ाता है, वो भी जीरो बटे सन्नाटा यानी उन बच्चों को जो कुछ भी नहीं पढ़े हैं।
है ना गजब की बात।
इसलिए प्राथमिक शिक्षक का दर्जा सबसे ऊपर होता है। क्यों कि वो आल सब्जेक्ट पढ़ाते हैं।
सब कहेंगे हां बिल्कुल सही बात है। आदर मिलना चाहिए गुरू जी लोगों को। काॅलेज वाले भी कहेंगे, हायर सेकेण्डरी वाले भी और प्राचार्य जी भी यही कहेंगे।
और अगर बोला जाये कि आल सब्जेक्ट पढ़ाते हैं, साथ ही पुस्तक ढोकर ले जाना, बांटना, गणवेश, छात्रवृत्ति के साथ साथ सारी गणना जैसे मतगणना, जनगणना, पशु गणना ये तो राष्ट्रीय कार्य हैं ही जो पढ़ाते-पढ़ाते करना ही है।
और ऊपर वालों का यानी केवल एक विषय पढ़ाने वालों का तुर्रा ये भी है कि नीचे की कक्षा से ही कमजोर बच्चे आ रहें हैं तो हम क्या करें..?
भैया जी केवल एक विषय पढ़ा रहे हैं, तो उसे शुरू से आखिरी तक उस विषय में पारंगत कर दो। वो तो आल सब्जेक्ट पढा़कर, थोड़ा-थोड़ा सब सिखाकर। इसीलिए आपके पास भेज देते हैं, पारंगत करने के लिए।
इसके अलावा पंक्तिबद्ध खड़े होना, करबद्ध होना, प्रार्थना करना, सावधान-विश्राम होना, पी टी करना और राष्ट्र गान, राष्ट्रीय गीत सिखाना ये सब तैयार करके वो बड़ी कक्षाओं में भेजता है। अब आपको केवल एक विशेष विषय में पारंगत करना होता है।
मजे की बात तो ये देखो कि प्रायमरी का शिक्षक खुद ताला खोलता है और बंद करता है, घंटी भी बजाता है, बच्चों को एम डी एम के लिए हाथ धोकर लाइन से बैठाता है।
खुद ही है वो सब कुछ। आल सब्जेक्ट की तरह।
जबकी छोटे बच्चे ज्यादा गंदा करते हैं, चपरासी की जरूरत तो प्रायमरी में है, पर वाह रे विडम्बना।
तो इनकी तन्खवाह भी सबसे ऊपर, सबसे ज्यादा होनी चाहिए। जो आल सब्जेक्ट पढ़ा रहे हैं। और खुद पूरा काम कर रहे हैं।
तो सभी एक स्वर में कहेंगे।
ना जी ना। ऐसा कैसे हो सकता है। इम्पाॅसीबल।
खैर तनख्वाह छोड़िये वो तो तसल्ली के लिये लिखा था। बस आप उन्हें हमेशा सम्मान देते रहें, क्योंकि वह आल सब्जेक्ट का जानकार होता है।कोशिश करें भाषा आदेशात्मक ना हो, सहयोगात्मक हो।
सबसे ज्यादा गाज भी प्रायमरी शिक्षक पर गिरती है, सारी जाॅंच उसी की होती है, सारी निगाहें उसी पर होती है, सारा दोष उसी का होता है। सारे शोधकर्ता उसी पर शोध करते हैं।
सोशल मीडिया पर वीडियो भी वायरल उन्हीं के हैं, पत्रकार भी वहीं जाते हैं, कमी ढूंढने।
कमी तो कोई भी किसी की आसानी से निकाल सकता है, दुनियाॅं में सबसे सरल और सस्ता काम है, तो कमी ढूंढ़ना।
बच्चे बड़े हुये तो कुछ अच्छा कर गये तो यही बड़े स्कूल सामने आते हैं, हमारा छात्र है।मीठा-मीठा गप और कड़वा थू। गुरुजी एक तरफ हो गये। कोई नहीं कहता कि यह बच्चा फलां प्रायमरी से आया था और आज कहां पहुंच गया।
सम्मान आदर देने में कोई पैसा या पूंजी नहीं लगती, बस निवेश होता है। जो दुगुना-चौगुना करके वह आपको समय-समय पर वापस भी करता है।
इसरो वैज्ञानिक हो या कोई भी उच्च पद शायद ही कोई होगा जो बिना प्रायमरी में पढ़े डायरेक्ट हाई स्कूल पहुंच गया हो या डाॅक्टर, कलेक्टर या इंजीनियर बना हो।
कभी कभार पन्द्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी को ही सही बड़े स्कूल, बड़े मंच से इन्हें भी शाल श्रीफल भेंट करते रहिये, हिम्मत बढ़ेगी इनकी भी। पद कुछ लेवल पर कमतर हो सकता है, पर काम बड़ा है और चैलेंज वाला।
मैं ये भी मानता हूं, कि कुछ शिक्षक गड़बड़ हो सकते हैं, पर सब नहीं। और रहा सवाल केवल प्रायमरी में गड़बड़ी हो सकती है, सभी में हायर सेकेण्डरी हो काॅलेज हो या कोई और विभाग। नमूने सब जगह हैं।
तो फिर ऊंगली प्रायमरी पर ही क्यों..?
मुझे गर्व है कि मैं प्राथमिक शाला का शिक्षकहूँ...!!
एक आम सहायक शिक्षक 🙏💐
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