आत्मा से तृप्त लोग-
*दिल्ली बस स्टैंड पर बैठा मैं पंजाब जाने वाली बस का इंतजार कर रहा था। अभी बस काउंटर पर नही लगी थी।*
*मैं बैठा हुआ एक किताब पढ़ रहा*
*था। मेरे को देखकर कोई 10 एक* *साल की बच्ची मेरे पास आकर* *बोली, "बाबू पैन ले लो,10 के चार* *दे दूंगी। बहुत भूख लगी है कुछ खा* *लूंगी।"*
*उसके साथ एक छोटा-सा लड़का भी था, शायद भाई हो उसका।*
*मैंने कहा: मुझे पैन तो नहीं चाहिए।*
*उसका जवाब इतना प्यारा था,* *उसने कहा, फिर हम कुछ खाएंगे* कैसे ?*
*मैंने कहा: मुझे पैन तो नहीं चाहिए पर तुम खाओगे कुछ जरूर।*
*मेरे बैग में बिस्कुट के दो पैकेट थे, मैने बैग से निकाल एक-एक पैकेट दोनों को पकड़ा दिया। पर मेरी हैरानी की कोई हद ना रही जब उसने एक पैकेट वापिस करके कहा,"बाबूजी, एक ही काफी है, हम बाँट लेंगे"।*
*मैं हैरान हो गया जवाब सुन के !*
*मैंने दुबारा कहा: "रख लो, दोनों* *कोई बात नहीं।"*
*फिर आत्मा को झिझोड़ दिया उसके के जवाब ने उसने कहा: "तो फिर आप क्या खाओगे"?*
*मैंने अंदर ही अंदर अपने आप से कहा कि ये होते हैं आत्मा के तृप्त लोग।*
*बेशक कपड़े होण मैले,*
*पर इज्जत होवे कजी।*
*ढिडों बेशक भुखा होवे,*
*पर रूह होवे रज्जी।*
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