सावन को मनाएँ

रस से भरे
आम हैं पुकारते
मस्ती में झूमें

लीची हैं तनी
करतीं दिलजोई
रस से भरी

ऊँचे नभ में
कड़कती बिजली
धरा लुभातीं

मेघा गरजें
गरज तरज से
जियरा काँपे

सखी री आओ
वर्षा में अब भीजें
मन है झूमे

धरा गगन
प्रेम से हैं मिलते
बरखा नाचे

आषाढ़ मास
सावन की प्रतीक्षा
जिया तरसा

चलो सखी री
सावन को मनाएँ
मल्हार गाएँ
-----कात्यायनी-----

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