कैफी आजमी जी🙏




*‘मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था...’*

_कैफ़ी आज़मी की पुण्यतिथि पर आलेख_

कैफ़ी आज़मी छोटी से उम्र में ही कविताएं पढ़ने लगे थे।  फिर भाइयों के कहने पर खुद भी लिखने लगे।  मात्र 11 वर्ष की उम्र में ही अपने पहली ग़ज़ल लिखी।  14 जनवरी 1919 को जन्मे कैफ़ी आज़मी 1936 में ही साम्यवादी विचारधारा वालों के साथ जुड़ गए।  1943 में अपनी पार्टी के मुंबई कार्यालय में जाकर उर्दू जर्नल ‘मजदूर मोहल्ला’ के संपादक की ज़िम्मेदारी सँभाल ली।  इसके साथ ही उन्होंने अपना लेखन कार्य भी जारी रखा।  कैफ़ी भावुक और रोमांटिक शायरी में भी प्रेरणा, देश भक्ति से संबंधित शब्दों का प्रयोग करते थे।  आज़ादी के लड़ाई में भी वह शामिल थे।  ऐसे में उनकी मुलाक़ात शौकत नाम की महिला से हुई जो वैसे तो आर्थिक रूप से संपन्न परिवार से थी और साहित्य प्रेमी भी लेकिन कैफ़ी से 1947 में विवाह के पश्चात उसने अपना सारा ऐश्वर्य त्याग दिया और दोनों केवल अपने बूते पर ज़िंदगी गुजारने लगे।

कैफ़ी आज़मी फ़िल्मी दुनिया से वर्ष 1951 में जुड़े।  विख्यात उर्दू लेखिका इस्मत चुगताई ने जब देखा कि शौकत एक बच्चे को जन्म देने वाली है लेकिन उसके पास खाने-पीने के लिए भी पर्याप्त पैसे नहीं हैं।  उसे मालूम था कि वे लोग किसी की मदद भी स्वीकार नहीं करेंगे।  ऐसे में इस्मत चुगताई ने अपने पति शहीद लतीफ़ जो कि फ़िल्म निर्देशक थे को, यह सुझाव दिया कि कैफ़ी आज़मी से वे फ़िल्म के लिए गीत लिखवाये।  काफी जद्दोजहद के बाद कैफ़ी आज़मी ने संगीतकार सचिन देव बर्मन के संगीत निर्देशन में फ़िल्म ‘बुज़दिल’ के लिए पहला गीत ‘रोते-रोते गुजर गई.......’ लिखा जिसे आज भी पसंद किया जाता है।
उनका मुशायरा साथ-साथ चलता रहा और धीरे-धीरे वह फ़िल्मों से भी जुड़ने लगे।  बहुत से निर्देशकों और संगीत निर्देशकों ने अपनी फ़िल्मों में उनकी धारधार कलम का इस्तेमाल किया। ‘यहूदी की बेटी’, ‘मिस पंजाब मेल’, ‘परवीन’, ‘ईद का चाँद’ जैसी फ़िल्मों के लिए लिखते हुए वे ख्वाजा अहमद अब्बास और बिमल रॉय जैसे लोगों के संपर्क में आए।  उन दिनों ही साहिर लुधियानवी, जां निसार अख्तर, मजरूह सुल्तानपुरी जैसे शायरों के साथ वह भी फ़िल्मी दुनिया के बदलाव के लिए तैयार हो गए।  उसके बाद कैफ़ी आज़मी कहीं नहीं रुके और फ़िल्मी दुनिया में अपना नाम स्थापित करने में सक्षम रहे।

1959 की एक फ़िल्म ‘कागज के फूल’ में गीत लिखने पर उनकी विशेष पहचान बन गई।  दरअसल गुरुदत्त की इस फ़िल्म का निर्माण लगभग पूरा हो चुका था लेकिन इस बीच संगीतकार सचिन देव बर्मन ने कैफ़ी आज़मी के साथ एक गीत तैयार किया।  समस्या यह थी कि यह गीत फ़िल्म में शामिल करना मुश्किल था क्योंकि ऐसी कोई ‘सिचुएशन’ नहीं बन रही थी।  गुरुदत्त को वो गीत इतना पसंद आया कि फ़िल्म में थोड़ा हेर-फेर कर इस गीत के लिए जगह बनाई और ‘वक़्त ने किया क्या हसी सितम......’ गीत फ़िल्म में शामिल किया।  हालांकि ‘कागज के फूल’ फ़िल्म बिलकुल नहीं चली और गुरुदत्त तनाव में आ गए लेकिन इस गीत के हिट होने पर कैफ़ी आज़मी को और अधिक फ़िल्में मिलने लगी।

‘जाने क्या ढूँढती रहती हैं.......’ और ‘जीत ही लेंगे बाज़ी हम तुम.......’ जैसे गीतों से सजी फ़िल्म ‘शोला और शबनम’ बॉक्स ऑफिस पर धड़ाम से गिर गई लेकिन कैफ़ी आज़मी को उनके गीतों के लिए बहुत वाह-वाही मिली।
  
कैफ़ी आज़मी ने जो आगे चलकर गीत लिखे उनमें ‘धड़कते दिल की तमन्ना.......’ (शमा - ग़ुलाम मोहम्मद), ‘धीरे-धीरे मचल.......’ (अनुपमा – हेमंत कुमार), ‘बदल जाये अगर माली.......’ (बहारें फिर भी आएंगी – ओ पी नैयर), ‘है कली कली के लब पर.......’ (लाला रुख – खय्याम), ‘प्यार की दास्तां तुम सुनो......’ (फरार – हेमंत कुमार), ‘तुझे मिली रोशनी मुझको अंधेरा.......’ (अपना हाथ जगन्नाथ – सचिन देव बर्मन), ‘एक पैसे का सवाल है......’ (घर का चिराग – मदन मोहन), ‘राम राम जपना पराया माल अपना.......’ (दो दिल – हेमंत कुमार), ‘जा देख लिया तेरा प्यार.......’ (ज़िंदगी – मोहम्मद शफ़ी), ‘बहारों मेरा जीवन भी संवारों.......’ (आख़री ख़त – खय्याम), ‘ये नयन डरे डरे.......’ (कोहरा – हेमंत कुमार), ‘पीतल की मोरी गागरी.......’ (दो बूंद पानी – जयदेव), ‘सब जवां सब हसीं.......’ (मैं सुहागन हूँ – लछीराम तमर),  ‘आ प्यार की बाहों में....... (चाँद  ग्रहण – जयदेव), ‘मेरी आवाज़ सुनो.......’ (नौनिहाल – मदन मोहन), ‘झूम-झूम ढलती रात.......’ (कोहरा – हेमंत कुमार), ‘तुम बिन जीवन कैसा जीवन.......’ (बावर्ची – मदन मोहन), ‘माना हो तुम बेहद हसी.......’ (टूटे खिलौने – बप्पी लाहिरी), ‘जिस दिन से मैंने तुमको देखा है.......’ (परवाना – मदन मोहन), ‘तू ही सागर है तू ही किनारा.......’ (संकल्प – खय्याम), ‘ये रात है प्यासी प्यासी.......’ (छोटी बहू – कल्याणजी आनंदजी), ‘भीगा भीगा मौसम.......’ (सुराग – बप्पी लाहिरी), ‘दो दिन की जिंदगी.......’ (सत्यकाम – लक्ष्मीकांत प्यारेलल), ‘मरने का ग़म नहीं है.......’ (दीदार-ए-यार – लक्ष्मीकांत प्यारेलाल) जैसे शानदार गीत रहे जिन्हें एक बार सुनकर मन नहीं भरता और इन्हें बार-बार सुनने का मन करता है।

वर्ष 1964 में निर्माता-निर्देशक चेतन आनंद एक फ़िल्म लेकर आए जिसका नाम था ‘हक़ीक़त’ और इस फ़िल्म का संगीत संगीतकार मदन मोहन ने तैयार किया था।  अब जब गीत लिखने की बारी आई तो चुना गया कैफ़ी आज़मी को।  चूंकि फिल्म का मुख्य विषय चीन के साथ 1962 में हुआ युद्ध था लेकिन फिर भी फ़िल्म में यह भी दिखाया गया कि युद्ध में उन परिवारों पर क्या प्रभाव पड़ता है जिनके घर के सदस्य एक फौजी के रूप में युद्ध में शामिल होते हैं।  यह फ़िल्म भारतवर्ष के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और शहीद सैनिकों को समर्पित की गई थी।  इस फ़िल्म में गीतकार कैफ़ी आज़मी ने भी अभिनय किया था।  इस फ़िल्म का गीत-संगीत पक्ष फ़िल्म के अनुसार ही रखा गया था।  ‘हो के मजबूर मुझे.......’, और ‘अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों.......’ जैसे गीतों को सुनकर आज भी सबकी आँखें भीग जाती हैं।  इसी फ़िल्म के अन्य गीतों में ‘मैं ये सोचकर उसके दर से.......’ और ‘ज़रा सी आहट होती है.......’ भी बेहद श्रवणीय रहे।

युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित एक और फ़िल्म भी चेतन आनंद लेकर आए।  ‘हिंदुस्तान की कसम’ नाम की इस फ़िल्म में वर्ष 1971 में हिंदुस्तान और पाकिस्तान के युद्ध को ध्यान में रखते हुए वायु सेना की उपलब्धियों को दर्शाया गया है।  इस फ़िल्म के संगीतकार भी मदन मोहन थे और फ़िल्म के चारों गीतों को कैफ़ी आज़मी ने अपनी कलम से सजाया था।  शीर्षक गीत ‘हिंदुस्तान की कसम.......’ देशभक्ति गीत है जो देशप्रेम के लिए मर मिटना सिखाता है।  इसी फ़िल्म का एक और गीत जिसे मन्ना डे ने अपनी सधी हुई और प्रभावित कर देने वाली आवाज़ में गाया है, ‘हर तरफ अब यही अफसाने है.......’ आज भी कर्णप्रिय है।  इसी फ़िल्म का एक और गीत जो बहुत कम बजता है लेकिन इसके बोल बेहद मार्मिक हैं, ‘दुनिया बनाने वाले.......’ गीत को लता मंगेशकर ने गाया है।  लता मंगेशकर की आवाज़ में ही इसी फ़िल्म का एक और गीत बेहद लोकप्रिय रहा जिसे सुनने पर हमारी आँखें नाम हो जाती हैं, ‘है तेरे साथ मेरी वफ़ा.......’ गीत समस्त मानव जाति को प्रेम की एक अलग ही भाषा में प्रेरणा प्रदान करता है और यह गीत आज भी सबके लबों पर अपनी जगह बनाए हुए है।

कैफ़ी आज़मी को वर्ष 1969 में फ़िल्म ‘सात हिंदुस्तानी’ के लिए गीत लिखने का अवसर संगीतकार जे पी कौशिक ने दिया।  यह सभी गीत देशप्रेम और देशभक्ति पर आधारित थे जो किसी के लिए भी प्रेरणास्रोत हो सकते हैं।

फ़िल्मों के लिए कैफ़ी आज़मी की लिखी ग़ज़लों ने भी ग़ज़ल प्रेमियों पर अपना जादू बिखेरा।  ‘अर्थ’ फ़िल्म के लिए उनकी ग़ज़ल ‘तुम इतना जो मुस्करा रहे हो.......’ जिसे जगजीत सिंह ने गाया था एक बेमिसाल ग़ज़ल कही जा सकती है।  ‘झुकी झुकी सी नज़र.......’, ‘कोई यह कैसे बताए.......’, ‘तू नहीं तो जिंदगी में.......’, ‘तेरी खुशबू में बसे ख़त.......’ जैसी ग़ज़लों की उन्होंने भी दाद दी जो उस दौर में डिस्को सुना करते थे।  फ़िल्म ‘भावना’ की ग़ज़ल ‘मेरे दिल में तू ही तू है.......’, ‘तू कहाँ आ गई जिंदगी.......’ बेहद कर्णप्रिय है।
    
गीतकार कैफ़ी आज़मी ने फ़िल्मों के लिए लगभग 400 गीत लिखे लेकिन एक फ़िल्म ‘हीर राँझा’ में उनकी कल्पना को सभी ने बार-बार सलाम किया।  ‘हीर रांझा’ एक काव्यात्मक फ़िल्म थी जिसे लिखना कोई आसान काम नहीं था लेकिन कैफ़ी आज़मी ने यह काम अपने सिर पर लिया और ऐसी बेहद खूबसूरत कविताओं को दर्शकों के सामने रखा कि हर कोई उनका दीवाना हो गया।  इसके साथ ही इसके सभी गीत चाहे, ‘दो दिल टूटे दो दिल हारे.......’, हो या फिर ‘मिलो न तुम तो.......’ जैसा जबान पर चढ़ने वाला गीत।  मदन मोहन के संगीत निर्देशन से सजी फ़िल्म ‘हीर राँझा’ में कैफ़ी आज़मी का लिखा और मोहम्मद रफ़ी का गाया गीत ‘ये दुनिया ये महफिल.......’ सुनने वालों के दिल की धड़कनें तेज कर देता है।  इस फ़िल्म में कविता में ही ढाला गया गीत ‘मेरी दुनिया में तुम.......’ दो प्रेमियों के दिल की आवाज़ को इंगित करता है।  ‘तेरे कूचे में तेरा दीवाना.......’ (मोहम्मद रफ़ी), ‘जो मोटी तेरी नानी है.......’ (उषा तिमोती, एस बलबीर, कृष्ण कल्ले, हेमलता), ‘नाचे अंग वे.......’ (जगजीत कौर, शमशाद बेगम) जैसे शानदार गीतों के साथ-साथ इस फ़िल्म के लिए लता मंगेशकर का गाया और प्रिय राजवंश की आवाज़ में हीर वाला गीत ‘डोली चढ़ते ही हीर.......’ भला कौन भूल सकता है।
चेतन आनंद जब कोई फ़िल्म लेकर आते हैं तो उसके पीछे समाज के लिए भी एक संदेश होता है और यही वजह है कि उनकी फ़िल्मों में गीत-संगीत का भी विशेष महत्व होता है।  ऐसी ही एक अलग कहानी पर उनकी फ़िल्म ‘हँसते जख्म’ के गीत सुनकर मन की सभी तरंगे एक साथ बज उठती हैं।  मदन मोहन के संगीत निर्देशन में कैफ़ी आज़मी के लिखे गीत ‘तुम जो मिल गए हो........’ को एक-एक संगीत प्रेमी पसंद करता है और गाता भी है।  ऐसे ही इस फ़िल्म की एक क़व्वाली ‘ये माना मेरी जां.......’ एक अलग ही मूड बना देती है।  ‘हँसते ज़ख्म’ के लिए लता मंगेशकर की आवाज़ के दो गीत ‘आज सोचा तो आँसू भर आए.......’ और ‘बेताब दिल की तमन्ना यही है.......’ ऐसे गीत हैं जिसको सुनने वाली कोई महिला हो या फिर कोई पुरुष, सबकी आँखें नाम हो जाति हैं।
  
गीतकार कैफ़ी आज़मी के अधिकांश गीत आज भी बहुत पसंद किये जाते हैं। यह उनकी लगन और कार्य के प्रति समर्पित होने की भावना को दर्शाता है।  उनके लिखे गीतों की सूची बेहद लंबी है, फिर भी इस सूची में फ़िल्म ‘पाकीज़ा’ का जिक्र न हो तो यह आलेख अधूरा सा ही रह जाएगा।  ‘पाकीज़ा’ एक ऐसी फ़िल्म थी जिसे पूरा बनने में सोलह साल लग गए।  1972 में प्रदर्शित इस फ़िल्म को कमाल अमरोही ने ही लिखा और निर्देशित भी किया।  इस फ़िल्म में मीना कुमारी के अभिनय की पराकाष्ठा दिखाई देती है।  इस फ़िल्म का संगीत मुख्य रूप से गुलाम मोहम्मद ने ही तैयार किया था लेकिन उनके असमय निधन से शेष कार्य को संगीतकार नौशाद ने पूरा किया।  कैफ़ी आज़मी ने ‘पाकीज़ा’ के लिए ‘कौन गली गयो.......’ और ‘नजरिया की मारी.......’ जैसे गीत लिखे जिन्हें नौशाद ने संगीतबद्ध किया था।  कैफ़ी आज़मी की ही लिखी एक ग़ज़ल ‘चलते-चलते यूं ही कोई मिल गया था.......’ इस फ़िल्म की जान थी।  गुलाम मोहम्मद के संगीत निर्देशन में लता मंगेशकर की आवाज़ में सजा यह गीत ‘चलते-चलते.......’ आज भी पहले जितना ही लोकप्रिय है और अक्सर लोग इसे गुनगुनाते हैं।

कैफ़ी आज़मी मूल रूप से साहित्य से जुड़े हुए थे और उनकी बहुत सी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।  उनकी एक पुस्तक ‘आवारा सजदे’ को साहित्य अकादेमी ने वर्ष 1975 में पुरस्कृत किया।  भारत सरकार की ओर से उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।  

बहुत कम लोगों को मालूम है कि एम एस सथ्यु की फ़िल्म जो कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान के संबंधों पर आधारित थी की पटकथा और संवाद कैफ़ी आज़मी ने ही लिखे थे।  इसके लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ और साथ ही फिल्मफेयर अकादमी की ओर से उन्हें सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखक का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।  कैफ़ी आज़मी के नाम पर दिल्ली और आजमगढ़ के बीच ‘कैफ़ियत एक्सप्रेस’ (12226) नाम से एक रेलगाड़ी भी चलती है।

दिनांक 10 मई 2002 को महान साहित्यकार और फ़िल्मी गीतकार कैफ़ी आज़मी का निधन हो गया।  उनके लिखे गीत आज भी फ़िल्मी दुनिया में छाए हुए हैं और उनकी लिखी नज़्म और ग़ज़लें साहित्य की दुनिया को गौरवान्वित कर रही हैं।  वे हमेशा हम सब के बीच रहेंगे अपने गीतों और कविताओं के साथ।
लेखक मुकेश पोपली

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