Climax
😊😊👍😊😊👍ऐसा कहा जाता है कि पहला प्यार कभी नहीं भूलता और हर दिन यह विचार दिमाग में आता है कि, वह कहां होगी, कैसी होगी और क्या कर रही होगी....
एक बार घर पर,मेरा मोबाइल फोन बजा....
देखा तो एक अज्ञात नंबर था
मैंने फोन उठाया.....
सामने से एक मधुर आवाज आई:- क्या मैं रवि से बात कर सकती हूं..
आवाज थोड़ी जानी-पहचानी सी लगी....
मैंने कहा:-
हां बोलो,मैं रवि बोल रहा हूं,तुम कौन...
उसने कहा:- पहचानो,मेरा रोल नंबर 69 था...
रोल नंबर 69...
मुझे एक लड़की,रश्मि की याद दिलाई,जो स्कूल में मेरी एक सहपाठी थी,जिसने स्कूल के समय में कई प्रयासों के बावजूद मुझे महत्व नहीं दिया था....
तुरंत ही मैं घर के बाहर पहुंचा,दिल की धड़कन बढ़ गई, सांस भी रुक गई क्या करुं,समझ नहीं आ रहा था कि, कैसे बात करूं...
वह फिर बोली:- तुम कहां हो...
मैंने तुम्हें कितने सालों से नहीं देखा,मेरे पास तुम्हारा नंबर भी नहीं था,कल ही जीत मिला था,उससे तुम्हारा नंबर लिया और तुम्हें फोन किया....
अचानक उसने एक और बड़ा बम गिराया:-
मैं तुमसे मिलना चाहती हूं,कब समय है तुम्हारे पास...
मैंने तुरंत जवाब दिया:- रविवार को फ्री हूं....मिलते हैं...
उसने पूछा:- कहां मिलना है...
फिर उन्होंने शहर के सबसे अच्छे होटलों में से एक का नाम लिया और रविवार को शाम 5 बजे वहां मिलने का फैसला किया....
रविवार को अभी भी तीन दिन बाकी थे.....
मैं एक नया मोदी जैकेट लाया,फेशियल के लिए सैलून गया,बाल डाई किए,एक नया इत्र लाया,आखिरकार मैं अपनी "उससे" मिलने जा रहा था....
यह सब देखकर पत्नी ने पूछा:-
क्या बात है,क्या तैयारी चल रही है...बड़े सज संवर रहे हो...
रविवार को एक विदेशी कस्टमर के साथ मीटिंग है, बहाना बना दिया
पत्नी बेचारी....भोली भाली,वह मान गई...
फिर नए जूते,काला चश्मा भी खरीदा....
आखिरकार रविवार आ गया...सज संवर के तैयार हुआ,पत्नी और बच्चे समझ गए कि मैं एक बड़ी बैठक में जा रहा हूं.....
कार होटल के दरवाजे के सामने पहुंची,सामने वह गुलाब के फूल के साथ खड़ी,मेरा इंतजार कर रही थी.....
दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया और होटल में प्रवेश किया....
महंगे व्यंजनों का आदेश दिया,बहुत सारी बातें की और खाना समाप्त किया..
फिर मैंने अपने डेबिट कार्ड से भुगतान किया,जिससे मेरा बैंक अकाउंट,बहुत हल्का हो गया...
फिर अचानक ही उसने कहा:-
मुझे तुमसे एक काम है मुझे आशा है कि तुम मना नहीं करोगे....
मैंने कहा:- तुम्हारे लिए तो मेरी जान भी हाजिर है, बोलो क्या करना है ।
तुरंत उसने अपना बैग खोला और कुछ कागजात निकालते हुए कहा:-
मैं एलआईसी एजेंट हूं और मुझे इस महीने का लक्ष्य पूरा करना है....
तो कृपया आप एक पॉलिसी ले लें....
मैंने भोजन करते समय आपकी सारी जानकारी ले ली है, फॉर्म बाद में भर लूंगी बस तुम यहां "हस्ताक्षर" कर दो.....
मेरे पास हस्ताक्षर करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था...
अब मुझे इसकी किश्तों का भुगतान भी करना होगा, यह सोचकर ही बहुत तेज सिरदर्द होने लगा और अब हर किश्त इस घटना की याद को ताजा कर देगी....
तो इस तरह अचानक किसी से मिलने से पहले यह जानना बहुत ज़रूरी है कि वह आपसे क्यों मिलना चाहती है....
एलआईसी - स्कूल के साथ भी स्कूल के बाद भी...!!
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