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आज का सन्देश

आज का सन्देश             अपूर्णता मानव मन का स्वभाव है। कोई वस्तु हो, पदार्थ हो अथवा प्राणी जगत हो इस प्रकृति ने कुछ न कुछ विशिष्टता सबके भीतर प्रदान की है। प्रकृति कभी किसी के साथ अन्याय नहीं करती है। यदि इस दुनिया में पूर्ण कोई भी नहीं तो सर्वथा अपूर्ण भी कोई नहीं है।           अंतर केवल आपके दृष्टिकोण का है कि आप अपने जीवन के किस पहलू पर नजर रखते हैं। जो आपके पास नहीं है उस पर अथवा जो आपके पास है उस पर। ये बात सत्य हो सकती है कि जो सामने वाले के पास है वो आपके पास नहीं हो पर जीवन को दूसरी दृष्टि से देखने पर पता चलेगा कि जो आपके पास है वो सामने वाले के पास भी नहीं है।          किसी की उपलब्धियों को देखकर ईर्ष्या करने से बचो क्योंकि ईर्ष्या की आग दूसरों को जलाए न जलाए पर स्वयं को अवश्य जलाती है। संतोष और ज्ञान रूपी जल से इसे और अधिक भड़कने से रोको ताकि आपके जीवन में खुशियाँ जलने से बच सकें। ईर्ष्या से बचना ही प्रसन्न रहने का मार्ग भी है।  सुरपति दास  इस्कॉन/भक्तिवेदान्त हॉस्पिटल/भक्तिवेदा...

मन ही मंदिर है🙏

स्वजन प्रणाम सुविचार "विश्वास" एक संवेदनशील मनोभाव है। जो मानव संबंधो की पवित्र भावनाओं पर आधारित रहता है।यह चारित्रिक दृढ़ता को परखने के बाद अंतर्मन में धीरे-धीरे उत्पन्न होता है। आंतरिक प्रेम एवं सौहार्द से पल्लवित और पुष्पित होकर अंतस में फिर इन्हीं भावों को जन्म देता है।इससे मानवीय संबंध और अधिक प्रगाढ़ होते हैं। विश्वास   पारिवारिक और सामाजिक रिश्वतों कि बुनियाद है तथा इनके स्थायित्व के लिए संजीवनी काम करता है।विश्वासजन्य आत्मीयता के संबंध प्राणियों को आत्मीयता के बंधन में बांध लेते हैं,किंतु इसकी डोर इतनी नाजुक होती है कि टूटने में देर नहीं लगती। स्वार्थ इसका प्रमुख कारण है।इसका लेशमात्र भी विश्वास को एक पल के लिए टिकने नहीं देता।जब यह टूटता है तो हृदय पर चोट पड़ती है। फिर प्रगाढ़ से प्रगाढ़ संबंध भी चकनाचूर हो जाते हैं।जिसका प्रतिकूल प्रभाव जगत जीवन पर पड़ता है, क्योकि इनका अस्तित्व विश्वास पर टिका है। अत: इनके कल्याण के लिए विश्वास को बनाए रखना प्रत्येक समाज का कर्तव्य है। उनकी 'परवाह' मत कीजिये, जिनका 'विश्वास' "वक्त" के साथ बदल जाया करता है...