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I went to a Inter-Religion Integration Seminar.  The Bishop came, laid his hands on my hand and said, “By the will of Jesus Christ, you will walk today!” I smiled and told him I was not paralysed. The Rabbi came, laid his hands on my hand and said, “By the will of God Almighty, you will walk today! I was less amused when I told him there was nothing wrong with me. The Mullah came, took my hands and said, “Insha Allah, you will walk today!” I snapped at him, “There’s nothing wrong with me” The Hindu sadhu came and said "Beta, you will walk on your legs today." I said "Babaji - nothing wrong with my legs" The Buddhist Monk came, held my hands and said, “By the will of The Great Buddha, you will walk today!” I rudely told him there was nothing wrong with me. After the Seminar, I stepped outside and found my car had been stolen.  I believe in all Religions now.....

आवारा*_फिल्म रिव्यू

_* आवारा*_फिल्म review 14 दिसंबर 1951 निर्माता- राज कपूर निर्देशक- राज कपूर गीत- शैलेंद्र (S), हसरत जयपुरी (HJ) संगीत- शंकर, जयकिशन कलाकार- राज कपूर, नरगिस, पृथ्वीराज कपूर, लीला चिटनीस, के एन सिंह, कुक्कू, लीला मिश्रा, शशि कपूर, बेबी जुबेदा, बी एम व्यास, दीवान बसवेश्वरनाथ कपूर                      यह फ़िल्म हिन्दी सिनेमा की एक माइल स्टोन समझी जाती है.. बहोत बड़ी ब्लॉकबस्टर.. विदेशों में भी धूम मचायी इस फ़िल्म ने..फिल्म दक्षिण एशिया में रातों-रात सनसनी बन गई..और विदेशों में सोवियत संघ, पूर्वी एशिया, अफ्रीका, कैरेबियन, मध्य पूर्व और पूर्वी यूरोप में और भी बड़ी सफलता मिली इसे..चीन में भी इस फिल्म ने 100 मिलियन से अधिक टिकट बेचे..फिल्म में राज कपूर के घर से कुछ कलाकार भी थे जैसे की उनके छोटे भाई शशि कपूर, उनके पिता पृथ्वीराज कपूर और पृथ्वीराज कपूर के पिता दीवान बसवेश्वरनाथ कपूर..पहले तो ये फिल्म राज कपूर और के ए अब्बास मिलकर बना रहे थे..के ए अब्बास ये फिल्म दिलीप कुमार और अशोक कुमार को लेकर बनाना चाहते थे और महबूब खान से निर्देशित करना चाह...

Phoolon Se Dosti Hai👍 song Review

*बिना किताबों की*       *जो पढ़ाई सीखी*         *जाती है, उसे*     *"जिंदगी" कहते है....!!!?* 🌹 *सुप्रभात*🌹 Let’s start the day with Homi & J. B. H. Wadia’s 1960 drama film *”Duniya Jhukti Hai”* directed by J. B. H. Wadia.  The film starred Sunil Dutt and Shyama. They were supported by Kum Kum, B. M. Vyas, Wasti, Agha and Daisy Irani.  In old Hindi movies, especially those of 1950s and 1960s, we often see songs picturised on “Taanga” The beats of the horse was made famous by the great O. P. Nayyar when he gave one of his musician 2 shells of dried coconut and asked him to imitate the rhythm of the horse’s gait.   “Taanga” was actually a mode of public transport in India those days. With time, Taanga has all but vanished as a mode of public transport in India. But they have not become extinct. One can still find them in some small towns of India.  The most famous Tanga in Hindi films belonged to Basanti drawn by h...

मानव इतिहास का एकमात्र नायक..कन्हैया... कन्हैया...

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कटे जंजीर खुले दरवाजे....*_  आपने कभी सोचा है, कि वे जेल में ही क्यों जन्मे ? भादो की काली अँधेरी रात में जब वे आये, तो सबसे पहला काम यह हुआ कि जंजीरे कट गयीं। जन्म देने वाले के शरीर की भी, और कैद करने वाली कपाटों की भी। वस्तुतः वह आया ही था जंजीरे काटने... हर तरह की जंजीर! जन्म लेते ही वह बेड़ियां काटता है। थोडा सा बड़ा होता है, तो लज्जा की जंजीरे काटता हैं। ऐसे काटता है कि सारा गांव चिल्लाने लगता है- कन्हैया हम तुमसे बहुत प्रेम करते हैं। सब चिल्लाते हैं- बच्चे, जवान, बूढ़े, महिलाएं, लड़कियां सब... कोई भय नहीं, कोई लज्जा नही! वह प्रेम के बारे में सबसे बड़े भ्रम को दूर करता है, और सिद्ध करता है कि प्रेम देह का नही हृदय का विषय है। माथे पर मोरपंख बांधे आठ वर्ष की उम्र में रासलीला करते उस बालक के प्रेम में देह है क्या? मोर पंख का रहस्य जानते हैं? मोर के सम्बन्ध में लोक की एक प्राचीन धारणा है कि वह मादा से शारीरिक सम्बन्ध नही बनाता। मेघ को देख कर नाचते मोर के मुह से गाज़ गिरती है, और वही खा कर मोरनी गर्भवती होती है। यह वैज्ञानिक रूप से सत्य न भी हो, पर युगों से लोक की मान्यता यह...

!! चार मोमबत्तियां !!*

* ♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*            *!! चार मोमबत्तियां !!* ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ रात का समय था। चारों ओर पूरा अंधेरा छाया हुआ था। केवल एक ही कमरा प्रकाशित था। वहाँ चार मोमबत्तियाँ जल रही थी। चारों मोमबत्तियाँ एकांत देख आपस में बातें करने लगी। पहली मोमबत्ती बोली, “मैं शांति हूँ, जब मैं इस दुनिया को देखती हूँ, तो बहुत दु:खी होती हूँ। चारों ओर आपा-धापी, लूट-खसोट और हिंसा का बोलबाला है। ऐसे में यहाँ रहना बहुत मुश्किल है। मैं अब यहाँ और नहीं रह सकती।” इतना कहकर मोमबत्ती बुझ गई। दूसरी मोमबत्ती भी अपने मन की बात कहने लगी, “मैं विश्वास हूँ, मुझे लगता है कि झूठ, धोखा, फरेब, बेईमानी मेरा वजूद ख़त्म करते जा रहे हैं। ये जगह अब मेरे लायक नहीं रही। मैं भी जा रही हूँ।” इतना कहकर दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गई। तीसरी मोमबत्ती भी दु:खी थी। वह बोली, “मैं प्रेम हूँ, मैं हर किसी के लिए हर पल जल सकती हूँ। लेकिन अब किसी के पास मेरे लिए वक़्त नहीं बचा। स्वार्थ और नफरत का भाव मेरा स्थान लेता जा रहा है। लोगों के मन में अपनों के प्रति भी प्रेम-भावना नहीं बची। अब ये सहना मेरे बस क...

नाथूराम गोडसे 2014 की पोस्ट

आखिर क्या कारण है जो कुछ लोग गोडसे को हीरो और गाँधी को विलेन मानते है कुछ तथ्य पेश है- अगर रोना चाहे तो बिलकुल पढे :- क्या थी विभाजन की पीड़ा ? विभाजन के समय हुआ क्या क्या ? विभाजन के लिए क्या था विभिन्न राजनैतिक पार्टियों दृष्टिकोण ? क्या थी पीड़ा पाकिस्तान से आये हिन्दू शरणार्थियों की … मदन लाल पाहवा और विष्णु करकरे की? क्या थी गोडसे की विवशता ? क्या गोडसे नही जानते थे की आम आदमी को मरने में और एक राष्ट्रपिता को मरने में क्या अंतर है ? क्या होगा परिवार का ? कैसे कैसे कष्ट सहने पड़ेंगे परिवार और सम्बन्धियों को और मित्रों को ? क्या था गांधी वध का वास्तविक कारण ? क्या हुआ 30 जनवरी की रात्री को … पुणे के ब्राह्मणों के साथ ? क्या था सावरकर और हिन्दू महासभा का चिन्तन ? क्या हुआ गोडसे के बाद नारायण राव आप्टे का .. कैसी नृशंस फांसी दी गयी उन्हें l यह लेख पढने के बाद कृपया बताएं कैसे उतारेगा भारतीय जनमानस हुतात्मा नाथूराम गोडसे जी का कर्ज…. आइये इन सब सवालों के उत्तर खोजें …. पाकिस्तान से दिल्ली की तरफ जो रेलगाड़िया आ रही थी, उनमे हिन्दू इस प्रकार बैठे थे जैसे माल की बोरिया एक के ऊपर एक रची ज...

मैं कौन हूँ?* (Who Am I ? )

एक मन का अंतरद्वंद   *मैं कौन हूँ?* (Who Am I ? )  *सेवानिवृत्ति के बाद* , न कोई नौकरी, न कोई दिनचर्या, और एक शांत घर, जो अब सिर्फ सन्नाटे की गूंज है… मैंने अंततः अपने असली अस्तित्व को खोजना शुरू किया। मैं कौन हूँ? मैंने बंगले बनवाए, छोटे-बड़े कई निवेश किए, पर आज, चार दीवारों में सिमट गया हूँ। साइकिल से मोपेड, मोपेड से बाइक, बाइक से कार तक की रफ्तार और स्टाइल का पीछा किया — पर अब, धीरे-धीरे चलता हूँ, वो भी अकेले, अपने कमरे के भीतर। प्रकृति मुस्कराई और पूछा, "तुम कौन हो, प्रिय मित्र?" मैंने कहा, "मैं... बस मैं हूँ।" राज्य देखे, देश देखे, महाद्वीपों की सैर की, पर आज, मेरी यात्रा ड्राइंग रूम से रसोईघर तक सीमित है। संस्कृतियाँ और परंपराएँ सीखी, पर अब, केवल अपने ही परिवार को समझने की इच्छा है। प्रकृति फिर मुस्कराई, "तुम कौन हो, प्रिय मित्र?" मैंने उत्तर दिया, "मैं... बस मैं हूँ।" कभी जन्मदिन, सगाई, शादियाँ धूमधाम से मनाईं — पर आज, सब्ज़ियाँ खरीदने के लिए सिक्के गिनता हूँ। प्रकृति ने फिर पूछा, "तुम कौन हो, प्रिय मित्र?" मैंने कहा, "मैं.....