सत्संग का असर
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
राधे राधे राधे राधे
एक चोर ने राजा के महल में चोरी की। सिपाहियों को पता चला तो उन्होंने उसके पदचिह्नों का पीछा किया। पीछा करते-करते वे नगर से बाहर आ गये। पास में एक गाँव था। उन्होंने चोर के पदचिह्न गाँव की ओर जाते देखे।
गाँव में जाकर उन्होंने देखा कि एक संत सत्संग कर रहे हैं और बहुत से लोग बैठकर सुन रहे हैं। चोर के पदचिह्न भी उसी ओर जा रहे थे।सिपाहियों को संदेह हुआ कि चोर भी सत्संग में लोगों के बीच बैठा होगा। वे वहीं खड़े रह कर उसका इंतजार करने लगे।
सत्संग में संत कह रहे थे-जो मनुष्य सच्चे हृदय से भगवान कृष्ण की शरण में चला जाता है, भगवान कृष्ण उसके सम्पूर्ण पापों को माफ कर देते हैं।
भगवान श्री कृष्ण भगवत गीता यथारूप में अध्याय 18 श्लोक 66 में कहा हैः
*सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।*
*अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।*
समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ। मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूंगा
डरो मत
वाल्मीकि रामायण में आता हैः
*सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते।*
*अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम।।*
जो एक बार भी मेरी शरण में आकर 'मैं तुम्हारा हूँ' ऐसा कह कर रक्षा की याचना करता है, उसे मैं सम्पूर्ण प्राणियों से अभय कर देता हूँ – यह मेरा व्रत है।
इसकी व्याख्या करते हुए संत श्री ने कहाः जो भगवान का हो गया, उसका मानों दूसरा जन्म हो गया। अब वह पापी नहीं रहा, साधु हो गया।
भगवान श्री कृष्ण भगवत गीता यथारूप अध्याय 9 श्लोक 30
मैं कहते हैं
*अपिचेत्सुदाराचारो भजते मामनन्यभाक्।*
*साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः।।*
यदि कोई जघन्य से जघन्य कर्म करता है, किन्तु यदि वह भक्ति में रत रहता है तो उसे साधु मानना चाहिए, क्योंकि वह अपने संकल्प में अडिग रहता है।
कारण कि उसने बहुत अच्छी तरह से निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है।
चोर वहीं बैठा सब सुन रहा था। उस पर सत्संग की बातों का बहुत असर पड़ा।
उसने वहीं बैठे-बैठे यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि 'अभी से मैं भगवान कृष्ण की शरण लेता हूँ, अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। मैं भगवान कृष्ण का हो गया।
अब मैं रोजाना हरे कृष्ण महामंत्र का जब भी करूंगा
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*
सत्संग समाप्त हुआ। लोग उठकर बाहर जाने लगे।
बाहर राजा के सिपाही चोर की तलाश में थे। चोर बाहर निकला तो सिपाहियों ने उसके पदचिह्नों को पहचान लिया और उसको पकड़ के राजा के सामने पेश किया।
राजा ने चोर से पूछाः इस महल में तुम्हीं ने चोरी की है न ?
सच-सच बताओ, तुमने चुराया धन कहाँ रखा है ?
चोर ने दृढ़ता पूर्वक कहाः "महाराज ! इस जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं की।
सिपाही बोलाः महाराज ! यह झूठ बोलता है। हम इसके पदचिह्नों को पहचानते हैं। इसके पदचिह्न चोर के पदचिह्नों से मिलते हैं, इससे साफ सिद्ध होता है कि चोरी इसी ने की है।
राजा ने चोर की परीक्षा लेने की आज्ञा दी, जिससे पता चले कि वह झूठा है या सच्चा।
चोर के हाथ पर पीपल के ढाई पत्ते रखकर उसको कच्चे सूत से बाँध दिया गया। फिर उसके ऊपर गर्म करके लाल किया हुआ लोहा रखा परंतु उसका हाथ जलना तो दूर रहा, सूत और पत्ते भी नहीं जले।
लोहा नीचे जमीन पर रखा तो वह जगह काली हो गयी।
राजा ने सोचा कि 'वास्तव में इसने चोरी नहीं की, यह निर्दोष है।'
अब राजा सिपाहियों पर बहुत नाराज हुआ कि "तुम लोगों ने एक निर्दोष पुरुष पर चोरी का आरोप लगाया है। तुम लोगों को दण्ड दिया जायेगा।
यह सुन कर चोर बोलाः "नहीं महाराज ! आप इनको दण्ड न दें। इनका कोई दोष नहीं है। चोरी मैंने ही की थी।
राजा ने सोचा कि यह साधु पुरुष है, इसलिए सिपाहियों को दण्ड से बचाने के लिए चोरी का दोष अपने सिर पर ले रहा है।
राजा बोलाः तुम इन पर दया करके इनको बचाने के लिए ऐसा कह रहे हो पर मैं इन्हें दण्ड अवश्य दूँगा।
चोर बोलाः महाराज ! मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ, चोरी मैंने ही की थी। अगर आपको विश्वास न हो तो अपने आदमियों को मेरे पास भेजो।
मैंने चोरी का धन जंगल में जहाँ छिपा रखा है, वहाँ से लाकर दिखा दूँगा।"
राजा ने अपने आदमियों को चोर के साथ भेजा। चोर उनको वहाँ ले गया जहाँ उसने धन छिपा रखा था और वहाँ से धन लाकर राजा के सामने रख दिया।
यह देखकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ।
राजा बोलाः अगर तुमने ही चोरी की थी तो परीक्षा करने पर तुम्हारा हाथ क्यों नहीं जला ?
तुम्हारा हाथ भी नहीं जला और तुमने चोरी का धन भी लाकर दे दिया, यह बात हमारी समझ में नहीं आ रही है। ठीक-ठीक बताओ, बात क्या है ?
चोर बोलाः महाराज ! मैंने चोरी करने के बाद धन को जंगल में छिपा दिया और गाँव में चला गया।
वहाँ एक जगह सत्संग हो रहा था। मैं वहाँ जा कर लोगों के बीच बैठ गया।
सत्संग में मैंने सुना कि 'जो भगवान कृष्ण की शरण लेकर पुनः पाप न करने का निश्चय कर लेता है, उसको भगवान कृष्ण सब पापों से मुक्त कर देते हैं। उसका नया जन्म हो जाता है।
इस बात का मुझ पर असर पड़ा और मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि 'अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा।
अब मैं भगवान कृष्ण का हो लिया कि 'अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। अब मैं भगवान का हो गया।
इसीलिए तब से मेरा नया जन्म हो गया।
इस जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं की, इसलिए मेरा हाथ नहीं जला।
आपके महल में मैंने जो चोरी की थी, वह तो पिछले मैंने जन्म में की थी।
महाराज बहुत खुश हुए और उन्होंने भी भगवान श्री कृष्ण की पूजा करना शुरू कर दिया
कैसा दिव्य प्रभाव है सत्संग का ! मात्र कुछ क्षण के सत्संग ने चोर का जीवन ही पलट दिया।
उसे सही समझ देकर पुण्यात्मा, धर्मात्मा बना दिया।
चोर सत्संग-वचनों में दृढ़ निष्ठा से कठोर परीक्षा में भी सफल हो गया और उसका जीवन बदल गया।
राजा उससे प्रभावित हुआ, प्रजा से भी वह सम्मानित हुआ और प्रभु के रास्ते चलकर प्रभु कृपा से उसने परम पद को भी पा लिया।
सत्संग पापी से पापी व्यक्ति को भी पुण्यात्मा बना देता है। जीवन में सत्संग नहीं होगा तो आदमी कुसंग जरूर करेगा।
कुसंगी व्यक्ति कुकर्म कर अपने को पतन के गर्त में गिरा देता है लेकिन सत्संग व्यक्ति को तार देता है, महान बना देता है। ऐसी महान ताकत है सत्संग में !
एक घड़ी आधो घड़ी
आधो मे पुनि याद
तुलसी संगत साधु की
हरै कोटि अपराध..!!
*🙏🏾🙏🏽🙏🏻जय श्री कृष्ण*🙏🏼🙏🏿🙏
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